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Sunday, 27 August 2017

59. वन शाॅट - कंवल शर्मा

वन शाॅट- एक जासूस के बदले की कथा।

कंवल शर्मा अपने पहले उपन्यास वन शाॅट से ही चर्चा में आ गये थे। वन शाॅट की कहानी काफी रोचक व संस्पेंशपूर्ण है

कहानी-
         उपन्यास का नायक विनय रात्रा एक सरकारी जासूस है, जो अधिकतर देश से बाहर रहता है। विनय का इस दुनियां में उसके भाई रोहन रात्रा के अलावा और कोई भी रक्त संबंधी नहीं है।
  राजनगर निवासी रोहन रात्रा की एक रात नृशंस हत्या हो जाती है। अपने भाई की मौत का बदला लेने के लिए जब विनय रात्रा अपने सहयोगी मित्र राजेश के साथ राजनगर पहुंचता है तो उसका स्वागत उस पर एक हमले से होता है।
  राजनगर में पहले ही खतरनाक स्वागत के साथ ही कई और घटनाएं घटती हैं। विनय और राजेश जैसे- जैसे रोहन के हत्यारे की तलाश करते हैं तो उनके सामने कई मुसीबतें और कई रहस्यमयी बातें आती हैं।
- कभी रोहन रात्रा एक बदचलन, बेगैरत नजर आता है तो कभी वक्त का मारा इंसान।
- कभी उसकी कई प्रेमिकाएं सामने आती हैं तो कभी महिलाओं से धोखा खाया इंसान।
- कभी रोहन की मृत्यु हत्या नजर आती है तो कभी आत्महत्या ।
इस प्रकार की अनेक समस्याओं से जूझता हुआ जब विनय असली हत्यारे तक पहुंचता है तो पाठक भी अवाक रह जाता है।
- रोहन क्यों मारा गया?
- रोहन का हत्यारा कौन है?
- रोहन की हत्या या आत्महत्या का क्या चक्कर है?
- रोहन की प्रेमिकाओं का क्या किस्सा है?
- कौन था हत्यारा, क्यों हुयी रोहन की हत्या?
- मेयर का शहर पर कब्जा क्यों था?
- क्यों था सोये हुए लोगों का शहर?
ऐसे असंख्य प्रश्नों के उत्तर तो कंवल शर्मा का उपन्यास वन शाॅट ही दे सकता है।
संवाद-
     उपन्यास के संवाद की बात करें तो इस विषय में लेखक धन्यवाद के पात्र है की उनके संवाद बहुत अच्छे हैं और कहीं कहीं तो सूक्ति बन गये हैं।
जहां एक और संवाद कथा को आगे बढाने का काम करते हैं तो वहीं संवाद ही पाठक को कथा से बांधे भि रखते हैं।
लेकिन कंवल शर्मा की एक बङी गलती यह भी है की संवाद लंबे हैं और कहीं- कहीं तो हद से ज़्यादा लंबे हो गये।
कुछ अच्छे कथन और संवाद देखिए-

- पहला नियम- शांत रहो...और चीजों को समझने की कोशिश करो। (पृष्ठ 20)
- पांचवा नियम- ......पहला वार हमेशा स्टीक होना चाहिए। (पृष्ठ- 22)
परिस्थितियों के अनुसार व्यक्ति को कैसा व्यवहार करना चाहिए, इस प्रकार के कुल नौ नियम उपन्यास में है, लेकिन यह किसी मैनेजमेंट किताब का चैप्टर नहीं है।
- दौलत हमेशा ताकतवर होने का अहसास कराती है, लेकिन वही ताकत जब सर चढती है, तो दिमाग को भ्रष्ट कर देती है।"-(पृष्ठ 37)
- इश्क हाथ में थामें उस कांच के गिलास की तरह होता है, जिसे गर ढीला पकङा जाए, तो उसके छूट जाने का डर लेकिन उसे कस पकङा जाये तो उसके टूट जाने का खतरा। -(पृष्ठ -63)
- अक्लमंद काम करने से पहले सोचते हैं और बेवकूफ काम करने के बाद।- (पृष्ठ-190)
-“हम अपने दोस्त कभी नहीं खोते, हम उन्हें खोते है जिनके बारे में हमे ये मुगालता होता है कि वो हमारे दोस्त हैं” 
मेयर साहब - ये शहर हमारी जागीर है। यहाँ के लोग हमारे इशारे पर उठते-बैठते हैं।...ये उसकी दिल्ली नहीं है ये हमारा शहर है। ये राजनगर है, जिसके हम राजा हैं। -(पृष्ठ 213)

रोचक दृश्य -
उपन्यास क ई रोचक दृश्य है जो पाठक के लबों पर कभी मुस्कान तो कभी गुस्सा ला सकते हैं।
जैसे विनय और मेयर की मुलाकात।
एक अन्य दृश्य में विनय व राजेश द्वारा अपने पीछे लगे जुम्मन को चक्कर देने के लिए व्यर्थ घूमना बङा रोचक लगा।
लेखक के शब्दों में ही देख लीजिएगा।
और जुम्मन अपनी गाङी में उनके पीछे लगा इस बात पर सर धुन रहा था कि यूं एक जगह से दूसरी जगह बिना मतलब गाङी दौङाते रहने की आखिरकार वजह क्या है?

कमियां-
उपन्यास में कुछ कमियां भी हैं जो उपन्यास/पाठक को नजर तो आती हैं लेकिन वे उपन्यास की कहानी को प्रभावित नहीं करती।
- अनावश्यक कथा-
उपन्यास के प्रारंभ में कहानी के नायक विनय रात्रा की भूमिका में लगभग पचास पृष्ठ भर दिये गये और उन पचास पृष्ठों में जो कहानी है उसका मूल कथानक से  संबंध नहीं।
- लंबे संवाद-
उपन्यास के संवाद लंबे ही नहीं अति लंबे हैं। पता नहीं लेखक ने ऐसा क्यों किया है। किसी- किसी पात्र से तो संवाद बीस- पच्चीस पृष्ठ भी खींच दिये।
तब तो हद ही हो गयी जब छोटे-छोटे पात्र से अनावश्यक वार्तालाप दिखा कर भी दस पृष्ठ खर्च करने में लेखक हिचकिचाया नहीं।
शाब्दिक गलतियां-
उपन्यास में एक दो जगह शाब्दिक गलतियां है लेकिन वह कोई विशेष नहीं है।
- सेल फोन वापसी अपनी कोट की ऊपरली जेब में डाल लिया। -(पृष्ठ 84)
- जुम्मन का गाल उपङ गया।-(पृष्ठ-252)
ऊपरली और उपङना में ग्रामयत्व दोष है।
- विनय ने आगे बढकर उसको अपनी बाहों में ले लिया और उनके सर को अपने कंधे पर रख उनकी कमर को सहलाने लगा।
यहाँ कमर सहलाने की बजाय थपथपाने लगा शब्द ज्यादा उचित था।
- इंस्पेक्टर ताशी ने जब लाश बरामद की तो रोहन रात्रा की जेब से मोबाइल क्यों नहीं निकाला।
- राजनगर प्रवेश पर विनय पर हमला होता है, आखिर हमलावर को विनय आगमन  खबर कैसे लगी?
लेखन ने कई जगह उर्दू के शब्दों का इस्तेमाल किया है जो की वर्तमान में प्रासंगिक भी नहीं है।
जैसे प्रधानमंत्री को वजीरे आजम लिखना।
लेखक पर एक बङा आरोप लगा और वह है  भाषा शैली को लेकर। इनकी भाषा शैली पर मिस्ट्री राइटर सुरेन्द्र मोहन पाठक का प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। हालांकि एक ही लेखक को पढते रहने से ऐसा होना स्वाभाविक है, लेकिन अगर लेखक ने ऐसा जानबूझकर किया है तो मेरे विचार से लेखन ने अपनी प्रतिभा का हनन किया है। हालांकि यह लेखक का प्रथम उपन्यास इसलिए  मात्र एक उपन्यास पढकर किसी के प्रति गलत धारना नहीं बनानी चाहिए।
लेखक ने उपन्यास को खूब लंबा खींच दिया लेकिन प्रकाशन महोदय ने छोटे शब्दों का प्रयोग कर लगभग चार पृष्ठों के उपन्यास को 318 पृष्ठों में समेट दिया।
      
अगर समग्र दृष्टिकोण से देखा जाये और नाम मात्र की गलतियों को नजर अंदाज किया जाये तो उपन्यास बहुत रोचक है। उपन्यास की रोचकता का अंदाज इसी बात से भी लगाया जा सकता है की लंबे- लंबे संवाद भी पाठक को निराश नहीं करेंगे।
  उपन्यास का समापन भी पाठक को चौंकाने वाला है।
उपन्यास पढने योग्य है पाठक को निराश नहीं करेगा।

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उपन्यास - वन शाॅट ( मर्डर मिस्ट्री)
ISBN 81-7789-484-6
लेखक - कंवल शर्मा
प्रकाशक- रवि पॉकेट बुक्स- मेरठ
पृष्ठ- 318
मूल्य- 80₹

संपर्क-
कंवल शर्मा
Email- kanwal.k.sharma@gmail.com

Sunday, 20 August 2017

58. गुलाबी अपराध - एम. इकराम फरीदी

गुलाबी अपराध- एक अनसुलझी मर्डर मिस्ट्री
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एक हिंदू स्त्री सुनीता का प्रेमविवाह एक मुस्लिम व्यक्ति फुरकान से हो जाता है। इस विवाह से सुनीता के घरवाले व फुरकान के घरवाले दोनों नाराज हैं। दोनों परिवार अपने लिए अपने बच्चों को मरे हुए मान लेते हैं।
सुनीता की सहेली की लङकी पल्लवी के दो बाॅयफ्रेण्ड एक बार पल्लवी की मम्मी के कानों से झुमका व गले से चेन लूट लेते हैं। बाद में सुनीता उन दिनों लङकों को पहचान लेती है। और ये दोनों लङके किसी तरह सुनीता की हत्या कर स्वयं को सुरक्षित करना चाहते हैं।
पल्लवी का एक और बाॅय फ्रेण्ड है डाक्टर आदिल खान, वह किसी कारणवश सुनीता की हत्या करना चाहता है।
सुनीता का पति भी सुनीता की हत्या का इच्छुक है।
और एक शाम को घर पर सुनीता की हत्या हो जाती है।
हत्यारा कौन है?
- पल्लवी के बाॅय फ्रेण्ड अनन्य- रोहित?
- सुनीता का पति फुरकान?
- डाॅक्टर आदिल खान?
- फुरकान का छोटा भाई?
- सुनीता का भाई?
इस मर्डर मिस्ट्री को हल करने के लिए पुलिस विभाग के आॅफिसर इंस्पेक्टर बुट्टर और सब इंस्पेक्टर जाखङ मैदान में आते हैं, लेकिन अंत तक कोई भी इस मर्डर मिस्ट्री को हल नहीं कर पाता।
अगर पाठक को हत्यारे का नाम पता है तो वह वह हत्यारे का नाम व सिचुवेशन(स्थिति) बताये और नगद ईनाम दस हजार प्राप्त कर सकता है।
     उपन्यास जगत का यह एक बेहतरीन प्रयोग है। इस प्रकार एक बार प्रयोग टाइगर अपने उपन्यास 'किसका कत्ल करुं?' में कर चुके हैं।
   लेकिन टाइगर ने अपने आगामी किसी उपन्यास में  हत्यारे के जिक्र का कोई वर्णन किया या नहीं ऐसा 'किसका कत्ल करुं? ' में कोई क्लू नहीं दिया।
गुलाबी अपराध उपन्यास बहुत ही रोचक व सस्पेंशपूर्ण है।
पाठक के सामने एक स्थिति स्पष्ट होती है और उसे लगता है की यह हत्यारा है लेकिन तब स्थिति बदल जाती है और शक दूसरे, तीसरे, चौथे व्यक्ति तक क्रमशः सतत चलता रहता है।
गुलाबी अपराध-  एक ऐसी मर्डर मिस्ट्री है जिसने तेजतर्रा इन्वेस्टीगेटर का दिमागी संतुलन बिगाङ दिया। वह मानसिक शांति माने के लिए बुद्ध की शरण में जाने को तैयार हो गया।
        भौतिक सुख सुविधाओं को हासिल करने के लिए सही-गलत हर तरह के रास्ते अपना कर हर तरह की खुशियाँ अपने दामन में भर लेने को आतुर आधुनिक महानगर के ऐसे पात्रों की रोमांचक खून आलूदा दास्तान जिनके हाथ अंत में खाली के खाली रह जाते हैं....और रह जाते हैं सिर्फ टीसते जख्म, जो ताउम्र उन्हें अहसास दिलाते हैं कि वो इस अंधी दौड़ में शामिल हुए तो क्यों हुए।

कहानी-
           अगर उपन्यास की कहानी की बात करें तो यह सामाजिक मर्डर मिस्ट्री है। सुनीता नामक एक ऐसी महिला की कहानी है जिसकी मृत्यु के  कई इच्छुक हैं। और एक दिन सुनीता की उसी के घर में हत्या हो जाती है।
यहीं से कहानी में पुलिस विभाग का प्रवेश होता है जो की हत्यारे की तलाश में असफल रहती है।
अब हत्यारा कौन है ये लेखक के आगामी किसी उपन्यास में रहस्य खुलेगा।
हालांकि उपन्यास का कोई अन्य भाग नहीं है। मात्र ऐसा प्रयोग इमाम के तौर पर किया गया एक अच्छा प्रयोग है।
लेखक के आगामी उपन्यास ' ए टरेरिस्ट' के अंत में ' गुलाबी अपराध' के हत्यारे का नाम पर उसके कत्ल करने की वजह और कत्ल के वक्त की परिस्थिति का वर्णन होगा।
एक संदेश-
               कहानी लेखन का मुख्य उद्देश्य मनोरंजन ही होता है, लेकिन एक अच्छा लेखक मनोरंजन के साथ-साथ समाज को एक संदेश भी देता है। क्योंकि वह कहानी का चयन भी समाज से करता है तो कहीं न कहीं उसका एक नैतिक दायित्व भी है की वह समाज के लिए एक अच्छा संदेश दे सके। अगर इस दृष्टिकोण से देखा जाये तो लेखक एम. इकराम फरीदी इस दृष्टिकोण से खरे उतरे हैं।
प्रस्तुत उपन्यास में उन्होंने एक नहीं कई छोटे-छोटे विषयों को उठाता है जो समाज के लिए घातक हैं।
1. युवावर्ग का व्यवहार-
              वर्तमान युवा वर्ग अपने ऐशो आराम व फिजुल खर्ची के लिए किस तरह अपराध की दुनिया में जा रहा है इसका एक उदाहरण उपन्यास के दो पात्र अनन्य और रोहित हैं।
2. अभिभावकों का उत्तरदायित्व-
             बच्चों के गलत राहे पर जाने में उनके अभिभावकों का भी अप्रत्यक्ष योगदान है। वे अपने बच्चों पर उचित नजर नहीं रख पाते जिसका परिणाम ये निकलता है की बच्चे गलत राह पकङ लेते हैं।
3. मुस्लिम समाज में तलाक प्रथा-
                मुस्लिम समाज में तलाक प्रथा का कितना गलत प्रयोग हो रहा है इसकी भी एक छोटी सी छलक उपन्यास में देखने को मिलती है।
जब उपन्यास का एक पात्र जाने- अनजाने तीन बार तलाक शब्द बोल देता है तो उसका अपनी पत्नी से तलाक हो जाता है।
" कभी तो इतना गुस्सा आता कि इससे तीन बार बोलू तलाक़, तलाक, तलाक और घर से रवाना कर दूं।" - (पृष्ठ- )
और देखिए पाठक महोदय यहाँ तलाक भी हो गया। ऐसी प्रथा के विरुद्ध लेखक ने आवाज उठायी है।
4. स्वार्थपूर्ति के सामाजिक संगठन-
                  उपन्यास में कुछ ऐसे संगठनों का चित्रण भी है जो अवसर आने पर अपनी राजनैतिक रोटियां सेकने से बाज नहीं आते।
5. प्रेम विवाह-
            लेखक एक ओर बात की तरफ इशारा किया है- वह है प्रेम विवाह।
ज्यादातर इस प्रकार के प्रकरण में युवक- युवती अपने घर-परिवार, समाज से विद्रोह कर कर शादी तो कर लेते हैं  लेकिन जब इश्क का बुखार उतरता है तब वे बहुत पश्चाताप करते हैं।
  लेकिन इस तात्पर्य यह भी न लें की लेखक प्रेम विवाह के खिलाफ है। वह मात्र उन लोगों का विरोध करता है जो प्रेम विवाह के पश्चात उसे निभा नहीं सकते।

उपन्यास के पात्र-
          उपन्यास में पात्रों की संख्या कहानी अनुसार उचित है। कोई भी पात्र अनावश्यक नहीं है।
सुनीता- वह मुख्य पात्र है जिसकी मौत के कुछ लोग इच्छुक हैं। हिंदू स्त्री।
फुरकान- मुस्लिम, सुनीता का पति। सुनीता की मौत का इच्छुक ।
अनन्य, रोहित- पल्लवी के बाॅय फ्रेण्ड। अपनी ऐशो आराम की जिंदगी जीने के लिए अपराध की दलदल में धंस गये।
पल्लवी- सुनीता की सहेली की बेटी, जो पैसे वाले व्यक्ति से ही प्यार जताती है।
डाॅक्टर आदिल खान- सुनीता का प्रेमी और चालाक किस्म का व्यक्ति ।
इंस्पेक्टर बुट्टर व सब इंस्पेक्टर जाखङ- पुलिस विभाग के तेज तर्रार आॅफिसर। सुनीता मर्डर केस की जांचकर्ता।
इन मुख्य पात्रों के अलावा भी सुनीता- फुरकान के घरवाले, पल्लवी का परिवार, पुलिस विभाग, आदिल के मित्र व अन्य कई पात्र उपन्यास में उपस्थित हैं।

संवाद-
             उपन्यास के संवाद काफी अच्छे हैं और कहीं-कहीं तो रोचक व प्रेरक भी हैं।
फरीदी जी के पिछले उपन्यास ' ट्रेजडी गर्ल' के संवाद भी बहुत अच्छे थे।
संवाद (Dialogue) ही वह तत्व है जो किसी कहानी को आगे बढाने का कार्य करता है और इस कार्य में फरीदी जी ने अच्छा कार्य किया है।
" और उन परेंट्स को होश है जिनकी जवान लङकियां टाइम-बे- टाइम घर से बाहर रहती हैं। आप माॅर्डन कल्चर के नाम पर कितनी छूट दे सकते हैं।"- (पृष्ठ 153)
हिंदू शब्द की बहुत व्यापक परिभाषा दी है लेखक ने जो की  प्रशंसनीय कार्य है।
"शायद आपको जानकारी में ये बात नहीं की भारत में बसने वाला हर व्यक्ति हिंदू होता है- चाहे उसका मजहब कोई सा हो।"-(पृष्ठ-220)
शीर्षक-
     उपन्यास का शीर्षक नया व कहानी के अनुसार उचित है। यह भी पहली बार है की फरीदी के किसी उपन्यास का नाम हिंदी में है। इनके पूर्व दो व आगामी दोनों उपन्यासों का नाम अंग्रेजी में है।
   ऐशो आराम, फिजुलखर्ची जैसी एक बार अच्छी लगने वाली चीजें जो युवाओं को गुलाबी सपने दिखाती है लेकिन अनतः वे उसे अपराध की ओर धकेल देती है।
उपन्यास में कमी-
उपन्यास में कुछ खामियां भी हैं, हालांकि ज्यादा नहीं है इससे कहानी के प्रवाह व भाव पर कोई असर नहीं पङता। अगर लेखक चाहता तो थोङी सी कोशिश और चंद पंक्तियाँ का विस्तार कर उन गलतियों से बच सकता था।
जैसे पृष्ठ संख्या 67 पर रोहित व अनन्य सुनीता और फुरकान को देख कर पति-पत्नी घोषित कर देते हैं।
"जिस हैसियत से दोनों साथ में चल रहे हैं, उसके मुताबिक पति- पत्नी होने चाहिए।"
"यानि सुनीता ने एक  मुस्लिम से शादी की है।"
इसी प्रकार सुनीता की हत्या पर उनके घर से बाहर बहता खून देख कर एक राहगीर ने शोर मचा दिया - "खून.....।"
क्या यह दृश्य इस प्रकार दिखाना जरूरी था। एक राहगीर ने मात्र खून देख कर हत्या की घोषणा कर दी और वह सत्य साबित हुयी।
मेरे विचार से उक्त दोनों दृश्य किसी अन्य तरीके से दिखाये जाते तो ज्यादा उचित रहता।
   उपन्यास पठनीय है। पाठक को किसी भी स्तर पर निराश नहीं करेगी। उपन्यास की भाषा शैली और प्रवाह अच्छा है जो पाठक को उपन्यास से आबद्ध रखता है।
    उपन्यास एक मर्डर के साथ-साथ सामाजिक संदेश भी देता है और दस हजार का नगद इनाम भी।
लेकिन मुख्य प्रश्न यही उठता है की सुनीता का हत्यार कौन? तो इसका उत्तर -
SP बलविंद्र सिंह के शब्दों में- " देखिए, ये एक मर्डर मिस्ट्री है, एकदम क्लियर नहीं है कि हत्यारा कौन है। क ई पात्र सामने आते हैं, हम पूरी जांच और सेटिस्फेक्शन के बाद ही कोई फैसला लेंगे।"-(पृष्ठ 223)
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उपन्यास - गुलाबी अपराध
ISBN 81-7789-509-5
लेखक - एम. इकराम फरीदी
प्रकाशन- रवि पॉकेट बुक्स- मेरठ
पृष्ठ- 260
मूल्य - 80₹
संपर्क-
एम. इकराम फरीदी
मीरगंज, बरेली
उत्तर प्रदेश- 243504
Email- moikramfareedi@gmail.com
Mob/Wtp- 9911341862

Wednesday, 9 August 2017

57. हीरा फेरी- सुरेन्द्र मोहन पाठक

जीत सिंह सीरिज का एक बकवास उपन्यास।

यह जीत सिंह सीरिज का 11 उपन्यास है।
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कतरे कतरे का है नसीब जुदा, 
कोई गौहर कोई शराब हुआ।

ये था जीतसिंह की खानाखराब जिन्दगी का मुकम्मल फलसफा । 

“अपनी तकदीर से शिकवा किया, बुरे वक्त का मातम मनाया, बदनसीबी को कोसा, करोड़ों का माल हाथ लगा, दिल में खुशी की जगह दहशत है, उमंग की जगह अंदेशा है ।”
           सुरेन्द्र मोहन पाठक द्वारा लिखा गया उपन्यास हीरा फेरी, जी हां- हीरा फेरी.
 कहानी-
उपन्यास में कहानी है दुबई से आने वाले चार सौ हीरों की जिनकी कीमत बीस करोङ है। जैसे ही यह खबर अंडरवर्ल्ड में पहुंचती है की अंडरवर्ल्ड डाॅन अमर नायक के चार सौ करोङ के हीरे आ रहें है तो उनको लूटने के लिए कई लुटेरे तैयार हो जाते हैं।
  चार सौ हीरों की लूट को लेकर मची हाहाकार में कई अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं।

   प्रस्तुत उपन्यास की कहानी किसी भी रूप से रोचक नहीं है, लगता है जैसे उपन्यास को अनावश्यक विस्तार दिया गया है।
उपन्यास जीत सिंह सीरिज का है लेकिन यहाँ जीत सिंह न भी होता तो भी उपन्यास पर कहानी कोई भी किसी भी किसी भी प्रकार का फर्क नहीं पङने वाला था। पूरे उपन्यास में जीत सिंह साइड रोल में नजर आता है। उपन्यास  का केन्द्र तो सुहैल पठान और विराट पड्या पर रहता ही रहता है।
    कुल 350 पृष्ठ की इस उपन्यास में अंतिम पचास पृष्ठ पर जाकर कहानी कुछ रफ्तार पकङती है और रोचक भी बनती है। बाकी तीन सौ पृष्ठ में हीरों के लूटने वाले व्यक्ति की तलाश ही चलती रहती है।
  इस विषय पर असंख्य कहानियाँ, उपन्यास व फिल्म बन चुकी है इसलिए विषय रोचक होकर भी प्रस्तुतीकरण के अभाव में नीरस लगता है।

संवाद-
पात्रों की भाषा मुंबईया है, जो कहानी के अनुरूप है।
संवाद छोटे और कहानी के प्रवाह में उपयोगी हैं।
लेखक ने उपन्यास के पीछे कुछ मुंबई या शब्दों के हिंदी अर्थ भी दे रखें हैं। यह एक अच्छा प्रयास है।
ड्रम- दस करोङ
चकरी- गन
कच्चा लिंबू- नया आदमी।
येङा- पागल।
भीङू- बंदा, साथी।

कहानी की पृष्ठभूमि मुंबई के अंडरवर्ल्ड पर आधारित है। इसी प्रकार से इनके पात्र भी वही मुंबई भाषा बोलते हैं।
पात्र-
  उपन्यास मुंबई अंडरवर्ल्ड पर आधारित है जिसके कारण  में पात्रों की संख्या भी बहुत ज्यादा है लेकिन कोई भी पात्र अनावश्यक प्रतीत नहीं होता। सभी पात्र कहानी के अनुसार सही हैं।  
अमर नायक- मुंबई अंडरवर्ल्ड का डाॅन।
नवीन सोलंके- अमर नायक का डिप्टी।
हुसैन डाकी- दुबई और मुंबई के बीच डायमंड सप्लायर।
शिशिर सांवत- अमर नायक का वह व्यक्ति जो डायमंड डिलीवर लेने जाता है।
जोकम फर्नान्डो- शिशिर सावंत का साथी, अमर नायक का वह व्यक्ति जो डायमंड डिलीवर लेने जाता है।
अलीशा वाज- जोकम फर्नान्डो की प्रेमिका।
कीरत मेधवाल उर्फ जनरैल- नये मवाली लोगों का सलाहकार ।
विराट पड्या और सुहैल पठान- अमर नायक के स्मगलिंग के हीरों को लूटने की प्लान बनाने वाले।
जीत सिंह- एक टैक्सी ड्राइवर ।
गाइलो- जीत सिंह का साथी, टैक्सी ड्राइवर ।
देशपांडे- कस्टम अधिकारी, हीरों का पारखी।
वीरेश हजारे- कस्टम अधिकारी।

अन्य पात्र मगन कुमरा, किशोर पूनिया, तारानाथ, भाऊराव, टैक्सी मालिक , वीजू, पुलिस।

लेखकिय-
लेखक ने लेखकिय को दो भागों में विभक्त किया है। प्रथम भाग एक पृष्ठ से कम का है जिसमें पीछले व इस उपन्यास का वर्णन है।
लेखकिय का द्वितीय भाग आठ पृष्ठों में फैला है जिसमें वसीयत का जिक्र है। विभिन्न प्रकार के लोगों की विभिन्न प्रकार से की गयी वसीयत का जिक्र किया गया है।
लेखकिय पढकर लगा था की शायद उपन्यास में ऐसी कोई कहानी होगी लेकिन उपन्यास और लेखकिय का कोई संबंध नहीं, पता नहीं लेखक ने ये आठ पृष्ठ को काले कर दिये।

   सुरेन्द्र मोहन पाठक के प्रशंसकों को यह उपन्यास निराश नहीं करेगा।

सुमोपा की प्रथम कहानी सन् 1959 'सतावन साल पुराना आदमी' मनोहर कहानियाँ में प्रकाशित हुयी।
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में
1963- में प्रथम उपन्यास 'पुराने गुनाह, नये गुनहगार।
smpmystrywriter@gmail.com
सुरेन्द्र मोहन पाठक को हिंदी का सर्वश्रेष्ठ मिस्ट्री राइटर माना जाता है।
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उपन्यास- हीरा फेरी
लेखक- सुरेन्द्र मोहन पाठक
प्रकाशक- हार्पर काॅलिंस
ISBN 978-9-352-64443-8
www.HarperCollins.com
पृष्ठ- 350
मूल्य- 150