पैगाम- एक प्रेम कथा।
लोकप्रिय सामाजिक उपन्यासकार रानू की धर्मपत्नी सरला रानू द्वारा लिखा गया उपन्यास पैगाम पढने को मिला।
सरला रानू द्वारा लिखा गया यह उपन्यास एक प्रेम कथा है।
पैगाम ऐसे प्यार भरे दिलों की आंसू भरी कहानी, जो जिंदगी की शाम होने तक मिलने के लिए तङपते रहे, लेकिन जिनके साथ जिंदगी ने कभी वफा नहीं की।
कहानी-
उपन्यास की कहानी की बात करें तो यह एक अमीर बाप की बेटी और उसी बाप के यहाँ मूर्ति निर्माण वाले एक गरीब युवक की प्रेम कथा है।
दोनों का प्यार अमीर बाप की जिद्द के आगे पूर्ण नहीं हो पाता।
कहानी में प्रेमकथा के साथ-साथ हल्की सी प्राचीन मूर्ति तस्करी की भी कहानी चलती है और यह कहानी उपन्यास के मध्यांतर पश्चात कहानी को संभालने में सक्षम भी है।
कहानी का समापन दुखांत है, जो सहृदय पाठक को भावुक कर देता है।
उपन्यास के पात्र -
उपन्यास में जो भी पात्र हैं सब कहानी के अनुरूप हैं, सभी पात्रों ने अपनी-अपनी भूमिका में छाप छोङी है।
उपन्यास का एक मात्र पात्र मनोरमा ही ऐसा है जो अगर उपन्यास में न भी होता तो भी उपन्यास चल सकता था।
नायक- राजीव, नायिका- कामना, राजीव की माँ, कामना का पिता सेठ नारायण दास, सेन, बी.के., कुंदन, जाॅनी, मनोरमा, उमेश, सीमा, नौकर और पुलिसकर्मी ।
संवाद-
प्रेमपूरक उपन्यासों की एक विशेषता उनके संवाद भी होते हैं और जिस विषय में पैगाम उपन्यास खरा उतरता है।
"कहते हैं कि प्यार करने वालों के लिए प्यार एक ऐसा खेल होता है, जिसे वे दिल बहलाने के लिए खेलते हैं।"- (पृष्ठ-75)
"प्यार एक कल्पना होती है और शादी एक हकीकत।"- (पृष्ठ-120)
"प्यार का दूसरा नाम पागलपन ही तो है।"-(पृष्ठ-135)
"जिस दिल पर प्यार का रंग चढ जाये - उस पर दूसरा रंग नहीं चढ सकता।"-(पृष्ठ-136)
उपन्यास में कमी-
उपन्यास मध्यांतर भाग से पूर्व बहुत ही धीमी गति से चलता है, जिसके कारण रोचकता खत्म हो जाती है।
- पृष्ठ 92 पर नायक राजीव की माँ राजीव से उसकी शादी की बात करती है -" कहीं ऐसा तो नहीं कि तूने किसी लङकी को पसंद कर रखा हो?"(पृष्ठ-92)
जबकि राजीव अपनी माँ से पहले ही कह चुका था की वह शादी करेगा तो कामना से अन्यथा शादी नहीं करेगा।
कुछ शायराना अंदाज-
ऐसी शायरी का उपन्यास में अलग ही अंदाज है।
'एक हूक सी दिल में उठती है।
एक दर्द सा दिल में होता है।।
सारी रात हम करवटे बदलते हैं।
जब सारा जहां सोता है।।-(पृष्ठ-67)
उपन्यास के अंत में मात्र सार रूप में कहना जो स्वयं उपन्यास की पंक्तियाँ हैं और उपन्यास की समूची कथा को समेटे हुए हैं।
"दोष प्यार करने वालों का नहीं होता- क्योंकि प्यार जैसी पवित्र भावना को जन्म उसी भी उसी भगवान ने दिया है, जिसने ये संसार रचा है। दोष होता है उन लोगों का, जो सच्चे प्यार को नहीं पहचानते।........ मगर सच्चे प्रेमी ....दुनिया की रस्मों को छोङकर एक-दूसरे को पाकर ही रहते हैं- भले ही इसके लिए उन्हें अपने जीवन की आहुति क्यों न देनी पङे।" (पृष्ठ-255)
सरला रानू द्वारा लिखा गया सामाजिक उपन्यास पैगाम 12 खण्डों में विभक्त और 255 पृष्ठ में फैला है।
सामाजिक उपन्यास पढने वाले पाठकों को यह उपन्यास निराश नहीं करेगा।
हालांकि उपन्यास की कहानी विशेष नहीं है पर प्रस्तुतीकरण अच्छा है। उपन्यास मध्यांतर के पश्चात काफी तेज गति से चलता है और पाठक को बांधे भी रखता है।
उपन्यास के मुख्य आवरण पृष्ठ पर सरला रानू नाम न देकर मात्र रानू नाम दिया है, जिससे लगता है की रानू के नाम को भूनाने की कोशिश की गयी है। हालांकि सरला रानू जी उपन्यासकार रानू की ही धर्मपत्नी है।
सामाजिक उपन्यास पढने वाले उपन्यास को पढ सकते हैं, उन्हें यह उपन्यास निराश नहीं करेगा।
संपर्क
- सरला रानू
C-56, तृतीय फ्लोर
वेस्ट पटेल नगर
नई दिल्ली-8
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उपन्यास- पैगाम
लेखिका- सरला रानू
प्रकाशन- मनोज पॉकेट बुक्स- दिल्ली
पृष्ठ- 255
मूल्य- 25₹