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Saturday, 8 October 2022

536. पल पल दिल के पास- अतुल प्रभा

काश! यह कहानी काल्पनिक होती
पल पल दिल के पास- अतुल प्रभा
प्यार कोई बोल नहीं प्यार आवाज़ नहीं
एक खामोशी है, सुनती है, कहा करती है 
ना ये रुकती है, ना झुकती है, ना ठहरी है कहीं 
नूर की बूँद है, सदियों से बहा करती है। - गुलजार
 कुछ कहानियाँ, कुछ किताबें ऐसी होती हैं जो मन को छू जाती हैं। मन‌ पर एक अमिट छाप छोड़ जाती हैं।  और कहानी अगर सत्य हो और व्यथा से परिपूर्ण हो तो मन‌ में एक कसक सी भी उठती है काश! यह कहानी काल्पनिक होती।
   कल्पना सत्य से बहुत आगे की चीज है, पर कभी-कभी सत्य भी इतना कठोर होता है की वहाँ कल्पना भी ठहर गयी सी प्रतीत होती है।
ऐसी ही एक सत्य कथा है -पल पल दिल के पास।
लेखक अतुल प्रभा जी के साथ 18.09.2022
   सितम्बर 2022 में दिल्ली- मेरठ जाना हुआ था। दिल्ली में 'नीलम जासूस कार्यालय' प्रकाशन जाना हुआ। वहीं अतुल प्रभा जी से मुलाकात हुयी।‌ स्निग्ध मुस्कान चेहरे पर बिखेरते हुये मिले अतुल जी। वहीं उनकी यह किताब मिली जो अपने अंदर लेखक महोदय के अथाह दर्द को समेटे हुये है।          यह कहानी है एक इंटरनेशल कम्पनी में काम करने वाले युवा अतुल जी की,उनके पारिवारिक संघर्ष की, कोरोना काल की, कोरोना काल में उपजी पीड़ा की और उस पीड़ा को सहने करने वाले व्यक्तित्व की।
नई सदी के कगार पर खड़े 1990 के दशक में प्यार का कोई अवसर ही नहीं था।
परंतु बंगला भाषा का हिन्दी में उत्कर्ष साहित्य पढ़कर और ओमप्रकाश शर्मा जी के सामाजिक उपन्यास पढ़कर, मैं एक आदर्श रूप में 21वीं सदी में प्रवेश करने की जुर्रत करना चाहता था। मेरे मन के कोमल कोने में कोई अस्पष्ट-सी छवि उभर रही थी।
ज़िन्दगी ने अवसर दिया प्रभा से मिलने का। 
और यही अवसर अतुल जी के जीवन में बहार बन कर आया। 
  मध्यमवर्गीय परिवार की जो समस्या होती हैं उनमें पल्लवित- पुष्पित होता 'अतुल- प्रभा' का प्यार एक दिन विवाह में परिवर्तित हो गया। लेकिन परिवार की समस्याएं दिन प्रति दिन और कठिन होती चली गयी। पर 'अतुल-प्रभा' हर परिस्थिति से संघर्ष करते हुये अपने जीवन‌ पथ पर अग्रसर थे। 
    उनके जीवन में दो पुष्प पुत्रियों के रूप में आये और 'अतुल-प्रभा' की संघर्षमय जीवन में वात्सल्य बहार छा गयी। लेकिन ईश्वर ने तो इनके भाग्य में कुछ और ही लिखा था।
    तेज रफ्तार जिंदगी ने एक वह भी दिन देखा जब देश में 'जनता कर्फ्यू' लगा और फिर 'लाॅक डाउन'। पता नहीं था की तेज भागती जिंदगी ऐसे भी थम जायेगी। जनता घरों में सहमी- दुबकी सी बैठी थी और बाहर कोरोना नामक घातक वायरस कहर ढा रहा था।
     सरकार यथासंभव प्रयास कर रही थी पर कुछ ऐसे भी लोग थे जो 'कोरोना' को एक अफवाह मानते थे। कहते है दर्द को वही जानता है जिसने उसे अनुभव किया है। यही स्तिथि कोरोना को लेकर भी है। जिन्होंने अपने परिवार के सदस्य खोये हैं उनको पता है कोरोना का डर क्या है, वास्तव में‌ कोरोना क्या है।
   'अतुल-प्रभा' का हँसता-खेलता परिवार भी इस भयावह  कोरोना की चपेट में आ गया। घर के प्रथम सदस्य से फैला यह वायरस एक - एक घर के अन्य सदस्यों को भी अपनी चपटे में लेता गया, और सब कुछ धीरे-धीरे सामान्य होने की और बढते गये। पर किसे पता था भाग्य विधाता ने भाग्य में क्या लिखा है। उस 'होनी' को 'अनहोनी' करने के सब यत्न व्यर्थ हैं। 
     एक तरफ प्रभा जी अस्पताल में कोरोना से संघर्ष कर रही हैं तो बाहर अतुल जी परिवार की जिम्मेदारियों के साथ-साथ प्रभा जी की सेवा में दिन-रात लगे हुये हैं। इन दिनों का अतुल जी ने इतना मार्मिक वर्णन किया है की उनका दर्द साक्षात पाठक को स्वयं का दर्द महसूस होता है। पढते-पढते आँख नम हो जाती हैं। होठों पर एक अनाम उदासी सी छा जाती है, दिल बुझ सा जाता है। 
  अपनों को खोने का जो दर्द है वह वही जानता है जिसने उस दर्द को सहन किया है। 
     अतुल जी के जीवन में त्रासदी ज्यादा रही। जीवन संघर्ष में ही रहा, इसलिए अतुल जी‌ लिखते हैं- 
मैं भी जब छह साल का था, पिता का साया सिर से उठ गया था। मैंने अच्छी ज़िन्दगी कभी देखी ही नहीं थी तो जैसी देखी उसी जिन्दगी को अच्छा समझता था।
        प्रत्येक पुस्तक में कुछ न कुछ नया पढने को मिल जाता है, हर व्यक्ति के विचार एक-दूसरे से अलग होते हैं। ऐसा ही कुछ प्रस्तुत रचना में‌ पढने को मिला जो मुझे बहुत प्रभावशाली लगा।
इतने छोटे से ग्रह में, इतने छोटे से काल खंड में, कंस और रावण को पराजित करने के लिए ब्रह्माण्ड के रचयिता को अवतार लेने की कोई आवश्यकता नहीं थी।
       मेरे लिए आगे प्रश्न यह था कि ये सब नायक और चरित्र कौन थे ? सभी साधारण मानवों से अधिक शक्तिशाली थे। सभी के पास कोई ना कोई आधुनिक तकनीक भी अवश्य थी।
      चाहे वो कृष्ण का सुदर्शन चक्र हो या ब्रह्मास्त्र चाहे वो राम-लक्ष्मण के अग्निबाण हों या रावण का पुष्पक विमान। (पृष्ठ-72)
    प्रकाशक महोदय सुबोध भारतीय जी के विचार- 
अपनों को खोने की पीड़ा क्या होती है-ये सभी जानते हैं, पर अभिव्यक्त कम ही लोग कर पाते हैं। अपनी सबसे खास दोस्त के कोरोना काल में छिन जाने की पीड़ा का दंश उन्होंने सहा है और उसी पीड़ा के असह्य दर्द से उपजी है यह कहानी। 
  अतुल जी अपनी पत्नी प्रभा जी की स्मृति में बालिकाओं हेतु एक NGO 'अतुल्यप्रभा फाउंडेशन' भी चला रहे हैं। यह एक सराहनीय प्रयास है।
   अतुल जी ने अपनी जीवन की मार्मिक कथा 'पल-पल दिल के पास' में व्यक्त की है। लेकिन यह कथा शब्दों में अभिव्यक्त होकर हर सहृदय व्यक्ति को प्रभावित करती है। संवेदना शब्दों में ढलकर जन-जन की हो जाती है। पुस्तक पढते वक्त पाठक को यह प्रतीत भी होता है कि यह दर्द मात्र लेखक का ही नहीं अब पाठक का भी है।
   अगर आप संवेदना को अनुभव करते हैं, अगर आप सहृदय पाठक हैं तो यह रचना अवश्य पढें।

पुस्तक-    पल पल दिल के पास
लेखक -  अतुल प्रभा जी
प्रकाशक- सत्यबोध
पृष्ठ-     220
प्राप्ति लिंक- पल पल दिल के पास


5 comments:

  1. बेहद ही मार्मिक, सही कहा आपने, रिव्यू पढ़कर ही अजीब सी कसक दिल में उठी। पढ़ते वक्त न जाने क्या गुजरेगी और अतुल जी ने न जाने कैसे कष्ट भोगे होंगे। ईश्वर उन्हे हिम्मत और कामयाबी दे। दिलशाद दिलसे

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  2. आँखें नम हो गई। अतुल जी धैर्यशील व्यक्ति हैं जो इतना कुछ सहन किया है। ईश्वर इनके जीवन साथी को शांति प्रदान करे।

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  3. Very emotional padhne ka paryas rahega

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  4. Behtreen pustak ki behtreen sameeksha

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  5. अतुल जी की यह पुस्तक पढ़नी है। आपकी समीक्षा ने इसे पढ़ने की इच्छा को जागृत कर दिया है। जल्द ही पढ़ने की कोशिश रहेगी। आभार।

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