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Monday, 13 June 2022

520. सावधान, आगे थाना है - राकेश पाठक

भ्रष्ट पुलिस और राजनीति की कहानी
सावधान आगे थाना है- राकेश पाठक
पुलिस स्टेशन का बोर्ड देखकर माँ रुक गयी और उखड़ी सांसों को दुरुस्त करने लगी।
“भगवान का शुक्र है बेटी कि हम उन गुण्डों से पीछा छुड़ाकर यहां तक पहुंच गयी हैं। अगर हम उनके हत्थे चढ़ गयी होती तो वो हमारा सामान और गहने तो लूटते ही, साथ ही तेरी इज्जत से भी खेलते। ये भी हो सकता था कि कानून के डर से वो हम दोनों को जान से मार कर हमारी लाशों को ठिकाने लगा देते। वो देखो, सामने थाना है। अब डरने की कोई जरूरत नहीं है। अब हम सेफ हैं।" 
“हम सेफ नहीं हैं, मम्मी !"
"क्या मतलब?" 
"चलो, जल्दी से वापिस चलो।” 
“दिमाग खराब हुआ है क्या तेरा ? वापिस गये तो वो गुण्डे मिल जायेंगे।" 
“भले ही मिल जायें। लेकिन वो इतने बुरे नहीं होंगे, मगर हम थाने के सामने से गुजरी और पुलिस वालों के हत्थे चढ गयी तो हमारा वो हाल होगा, जो कि गुण्डे भी नहीं करेंगे।"
 क्या वर्तमान समय में पुलिस व्यवस्था इतनी भ्रष्ट हो गयी है?              अपराध साहित्य लेखन में राकेश पाठक का एक विशेष स्थान है। उत्तर प्रदेश के निवासी राकेश पाठक जी लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में 'एक्शन और तेजाबी संवाद शैली' उपन्यासों के लिए जाने जाते हैं।  इनके उपन्यासों में समाज में घटित क्रूर घटनाओं को अतिशयोक्ति ढंग से प्रस्तुत किया जाता है।
     'सावधान,आगे थाना है।' भी एक अतियथार्थवादी उपन्यास है। जो पुलिसविभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करता है। 
  उपन्यास का कथानक एक पुलिसकर्मी से आरम्भ होता है जिसका नाम है -राजनाथ। राजनाथ एक ईमानदार व्यक्ति है, लेकिन भ्रष्ट साथियों के चलते ईमानदारी की सजा राजनाथ को मिलती है। 
   राजनाथ का खुशहाल परिवार है, जिसमें पति- पत्नी के अतिरिक्त दो पुत्र और एक पुत्री है।  बड़ा बेटा विनीत आर्मी में, जो की शादी शुदा है लेकिन उसकी पत्नी अपनी मायके में ही रहती है। छोटा बेटा संजय बेरोजगार है, नौकरी के लिए संघर्षरत है, बेटी किरण शिक्षारत है।। 
 उपन्यास का एक और पात्र है शिवानन्द। वर्तमान नेता और धनाढ्य व्यक्ति शिवानन्द कभी काॅनस्टेबल राजनाथ का मित्र था और दोनों ने यह तय कारण या था कि अपने बच्चों की परस्पर शादी करेंगे।  लेकिन बदली परिस्थितियों में शिवानंद ने अपनी पुत्री करिश्मा की शादी राजनाथ के बेरोजगार पुत्र संजय से करने की बजाय कहीं और करने का मानस बना लिया।
फुलत सिटी  का खतरनाक गुण्डा है बिज्जू और उससे भी खतरनाक है बिज्जू का कमाण्डर हिंजडा मन्नो। मन्नो एक वहशी और क्रूर किस्म का व्यक्ति है। अगर आपने राकेश पाठक जी के उपन्यास पढे हैं तो आपको सहज अनुमान हो जायेगा की राकेश पाठक जी द्वारा रचित गुण्डे कितने खतरनाक होते हैं।
 बदली परिस्थितियों में राजनाथ पुलिस सर्विस से मुक्त होकर घर बैठ जाता है और यही से कहानी का रूप बदल जाता है, क्योंकि राजनाथ के मोहल्ले में 'हफ्तावसूली' चलती है और राजनाथ से यह सहन नहीं होता। वह पुलिस से शिकायत भी करता है।     
छोटे लाल सिगरेट में कश लगाकर और स्याह होठों पर कुत्सित किस्म की मुस्कान के साथ बोला, "तू क्या समझता है कि कोई गुन्डा बिना पुलिस की शह के धन्धा कर सकता है ? रूपा मुझे भी हफ्ता पहुंचाता है, जो कि पूरे स्टाफ में बंट जाता है।" 
"ये तो नाइन्साफी है सर। एक गुण्डा गरीब तबके के लोगों से जबरन हफ्ता वसूलता है और आप उसके खिलाफ कोई कार्रवाई करने की बजाय उससे रिश्वत खाते हैं?"
“ये वर्दी मुफ्त में नहीं मिल जाती है बेटे राजनाथ। इसे पैसे देकर खरीदा था। इस इलाके में ट्रांसफर कराने के लिये भी दो लाख दिये हैं। दुकानदारी है ये तो। पहले पैसा लगाओ और फिर कमाओ।"

      नेता शिवानंद, बिज्जू और कमाण्डर मन्नो पुलिस के साथ मिलकर सम्पूर्ण फुलत सीटी का जीना हराम कर देते हैं।  पुलिस जो आमजन की सुरक्षा के लिए है, वह भी अपराधी वर्ग का साथ देती है।
    एक ईमानदार काॅनस्टेबल का पुत्र संजय भी अंततः सत्य के रास्ते को त्यागने के लिए विवश हो जाता है। लेकिन अपराध के रास्तेहै। बैठे खतरनाक मगरमच्छ संजय का जीना हराम कर देते हैं। और संघर्ष आरम्भ होता है राजनाथ के सिद्धांतों, भ्रष्ट पुत्र संजय और अपराधी वर्ग के मध्य। यह त्रिकोण संघर्ष उपन्यास का विशेष अंश है। जहाँ एक तरफ ईमानदार, कर्तव्यपरायण पिता है, वहीं भ्रष्ट पुत्र है और दोनों उन अपराधियों से टकराते हैं जो उन दोनों के दुश्मन हैं।
   वहीं उपन्यास में निकृष्ट राजनीति का चित्रण भी पठनीय है।
हाँ, उपन्यास में अंत से पूर्ण एक चौंकाने वाला रहस्य सामने आता है जो विश्वसनीय प्रतीत नहीं होता। 
    निष्कर्ष में बस इतना ही की अगर आप एक्शन उपन्यास पसंद करते हैं तो यह उपन्यास आपको पसंद आ सकता है। कथा के नाम पर कोई विशेष कहानी नहीं है। उपन्यास में भ्रष्ट राजनीति और पुलिस का चित्रण विशेष रूप से किया गया है।
उपन्यास - सावधान, आगे थाना है
लेखक -   राकेश पाठक
प्रकाशक - गौरी पॉकेट बुक्स, मेरठ
पृष्ठ-         288



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