सिटी आफ इविल- दिलशाद अली
Flydreams Publication ने प्रकाशन कर क्षेत्र में एक टैग लाइन 'किताबें कुछ हटके' के साथ कदम रखा। और इस प्रकाशन की कुछ किताबें पढकर यह अनुभूत होता है कि यह टैग लाइन कितनी सार्थक है। वास्तव में इस प्रकाशन से आयी कुछ किताबें मेरे विचार से हिंदी में पहली बार प्रकाशित हुयी हैं। कुछ अलग विषयों पर आधारित रोचक किताबें।
इसी क्रम में उत्तर प्रदेश के युवा लेखक दिलशाद अली का प्रथम उपन्यास 'सिटी आफ इविल' है। यह एक अलग तरह की कहानी है। मेरे विचार से यह हिंदी में प्रथम प्रयास है। गुरू शिखर- माउंट आबू
'बखुंदा' एक पहाड़ी इलाके से घिरा हुआ,चारों तरफ बियाबान जंगल ही जंगल, भारत के नक्शे में आखिर में मौजूद और ज्यादातर भाग समुंदर से घिरा हुआ था। वहाँ के लोग बेहद शांत,बाहरी चमक से अनजान, अपनी घुन में ही खुश रहने वाले थे। (पृष्ठ 14)
उपन्यास की कहानी इसी रहस्यमयी जगह से संबंध रखती है। क्योंकि सन् 2020 में यहाँ की एक रहस्यमयी जगह पर अथाह खजाना मिलता है।
पांच साल बाद....सन् 2025.
वक्त बदला, समय बदला, देश बदला और बुलेट ट्रेन का जमाना आ गया।
प्रधानमंत्री का सपना था खुशहाल देश का। इसकी शुरुआत सब से पहले उस स्थान से की जा रही थी जो भारत के नक्श में सबसे अंत में समुंदरी इलाके में आता था। यहाँ की आबादी अधिक थी, इसलिए इसे चुना गया। उस स्थान को बुलेट ट्रेन से जोड़ा जाना था। (पृष्ठ-39)
तय समय पर बुलेट ट्रेन चली और उसमें देश के विभक्ति क्षेत्रों के लोगों को यात्रा का अवसर प्रदान किया गया। विद्यार्थी, वैज्ञानिक, अपराधी, और भी कुछ चयनित लोग इस यात्रा में शामिल थे।
ट्रेन के रास्ते में एक सुरंग थी। ट्रेन पूर्णत सुरक्षा के साथ, तय समय और तय मार्ग पर थी। पर वह उस सुरंग को पार न कर पायी।
सन 2025, भारत की पहली बुलेट ट्रेन जैसे ही उस सुरंग में से गुजरी, दूसरी तरफ से बाहर नहीं निकली।
पर ट्रेन गायब नहीं हुयी थी बल्कि जा पहुंची थी किसी अनजान शहर में, जिसे शैतानों का शहर भी कहा जा सकता था, एक ऐसा शहर जो लगभग 1500 साल पुराना था।
पर उस अनजान पुरानी जगह का अपना अलग रहस्य था, जो मुर्दों को जिंदों कर रहा था। (उपन्यास के अंतिम आवरण पृष्ठ से)
उपन्यास की कहानी सुरंग में अटकी इस ट्रेन पर आधारित है। यहाँ कुछ ऐसी रहस्यमयी और हैरत कर देने वाली घटनाएं घटित होती जिन पर सामान्य इंसान तो क्या वैज्ञानिक भी विश्वास नहीं कर पाते।
ट्रेन न तो सुरंग में आगे बढ पायी और न ही वापस लौट पायी, ट्रेन की खोज में निकले सभी अभियान भी असफल रहे।
वहीं ट्रेन के कुछ ऐसी घटनाएं घटित होती है की कुछ लोग मुर्दा हो जाते हैं और फिर मुर्दा जिंदा भी हो जाते हैं। ट्रेन के यात्री एक एक कर मौत का ग्रास बनते जाते हैं। लेकिन कुछ साहसी यात्री जब जिनमें उपन्यास नायक समरवीर और नायिका दिव्या भी है। और इनके कुछ साहसी साथी उन खतरनाक, हैवान और मौत को भी मात देने वाले दरिंदों से टकराते हैं। एक तरफ सामान्य इंसान और दूसरी तरफ वो खतरनाक दरिंदे जो मरने ने बाद भी जिंदा हो गये।
यहाँ यह पठनीय है की उन खतरनाक दरिंदों से टकराने वाले सामान्य इंसान अंत तक हार नहीं मानते, वे संघर्ष करते है, जब की उन्हें पता इनसे जीतना कठिन है।
उपन्यास में यह जिज्ञासा निरंतर बनी रहती है की आखिर उस सुरंग में ऐसा क्या था? और आगे यात्रियों के साथ क्या हुआ?
उपन्यास में कुछ दृश्य हास्यजनक हैं तो कुछ इतने वीभत्स है जिन्हें मेरे जैसे पाठक के लिए पढना कठिन था। हालांकि कहानी का स्तर ऐसे दृश्य के अनुरूप है।
उपन्यास क्योंकि दो भागों में है तो आगे की कथा के विशेष में कुछ कहा नहीं जा सकता।
हां, उपन्यास के अंत में आते कुछ रोचक अंश पढने को प्राप्त होते हैं। और यह रोचक अंश इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है की ऐसा हिंदी उपन्यास साहित्य मे पहले नहीं लिखा गया, जहाँ तक मेरी जानकारी है।
अंत के कुछ रोचक दृश्य।
- एक रहस्यमय लड़के का कथा में प्रवेश। जो सारी कहानी को एक झटके से बदल देता है।
- टाइम ट्रेवल्स का वर्णन।
मेरे विचार से टाइम ट्रेवल्स और जाॅम्बी टाइप की घटनाओं पर हिंदी में यह प्रथम प्रयोग है।
आगे क्या हुआ यह तो इस उपन्यास के द्वितीय भाग में ही पता चलेगा।
उपन्यास पढते वक्त यह स्पष्ट पता चलता है की यह लेखक का प्रथम प्रयास है। कहानी के स्तर पर कोई कमी नहीं है, बस अभी लेखक महोदय का अनुभव बहुत कम प्रतीत होता है। अभी एक-एक चीज अनुसंधान की आवश्यकता महसूस होती है। यह कमी अनुभव से ही दूर होगी।
कुछ बातें जो मुझे सही न लगी।
- वक्त बदला, समय बदला...(पृष्ठ-39)
- स्टैण्ड से गाड़ियां खाली होनी शुरु हो गयी (पृष्ठ-46)
जबकि होना यह था 'टैक्सी स्टैण्ड खाली होना शुरु हो गया।'
- 'बंदा काम का न सही, गाँव का जरूर है।'(पृष्ठ-37)
- कहीं-कहीं समय अंकन में मुद्रण गलती भी है।
लेखक महोदय ने उपन्यास में जो भारतीयत की पहचान बतायी है, भारत के लोगों का जो वर्णन किया है। वह वास्तव में प्रशंसनीय है। ऐसे प्रयोग उपन्यासों में होने चाहिए जो मूल कथा का अतिरिक्त पाठक को प्रभावित करते हैं।
"लोग आयेंगे, जायेंगे, दुनिया बनेगी, उजड़ेगी। पर इतिहास में हम सब एक भारतीय, एक इंसानियत के लिए जाने जाऐंगे।(पृष्ठ-153)
एक और विशेष पंक्ति देखें-
कुर्सी का यही तो फायदा होता है। दूसरों की तारीफ खुद ले लेते हैं और अपनी गलती दूसरों को दे दी जाती है। (पृष्ठ-52)
बाकी चर्चा इस उपन्यास के द्वितीय भाग आने पर।
हाॅरर साहित्य का एक दिलचस्प उपन्यास ।
उपन्यास- सिटी आॅफ इविल
लेखक- दिलशाद अली
प्रकाशक- Flydreams Publication
पृष्ठ- 214
उपन्यास के प्रति उत्सुकता जगाता आलेख। उपन्यास रोचक लग रहा है। जल्द ही पढ़ने की कोशिश रहेगी। आभार।
ReplyDeleteशानदार समीक्षा। मैं भी यह किताब पढ़ रहा हूं
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