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Thursday, 11 February 2021

419. माया मिली न राम- संतोष पाठक

नाम और दाम के लिए चली अनोखी चाल...
माया मिली न राम- संतोष पाठक, उपन्यास

लोकप्रिय जासूसी उपन्यास साहित्य में संतोष पाठक जी ने जो ख्याति अर्जित की है, वह प्रशंसनीय है। जितनी अच्छी कहानी है उतना ही तीव्रता से लेखन करने में वे सक्षम है।
  एक के बाद एक मर्डर मिस्ट्री लिखना,और वह भी रहस्य और रोमांच से परिपूर्ण। कभी कभी तो यूं प्रतीत होता है जैसे संतोष पाठक जी लेखन‌ की मशीन हो।
  मर्डर मिस्ट्री लेखन‌ में संतोष जी ने अपने नवसर्जित पात्रों और थ्रिलर के माध्यम से अपने सक्षम लेखन का सबूत दिया है प्रस्तुत उपन्यास 'न माया मिली न राम' के माध्यम से।
   यह कहानी एक ऐसे पुलिसकर्मी की जो हर हाल में नाम और दाम दोनों कमाना चाहता है। उसे तलाश है एक अच्छे मौके की और संयोग से यह मौका भी उसे मिल ही गया। 
 
दौलत और शोहरत दो ऐसी चीजें थीं, जिन्हें हासिल करने की खातिर सब-इंस्पेक्टर निरंकुश राठी किसी भी हद तक जा सकता था। स्याह को सफेद कर सकता था, बेगुनाह को फांस सकता था, मुजरिम के खिलाफ जाते सबूतों को नजरअंदाज कर सकता था। प्रत्यक्षतः वह ऐसा करप्ट पुलिसिया था जिसका नौकरी को लेकर कोई दीन ईमान नहीं था। ऐसे में एक रोज जब वह सड़क पर हुई एक मौत को अपने हक में करने की कवायद में जुटा, तो जल्दी ही यूं लगने लगा जैसे उसकी किस्मत रूठ गयी हो! जैसे ऊपरवाला उसके गुनाहों का हिसाब मांगने लगा हो।

    इन दि‌नों में किंडल पर कुछ अच्छी रचनाएँ पढ रहा हूए इसी क्रम में संतोष जी का उपन्यास भी पढा जो की चर्चित रहा है। यह एक थ्रिलर उपन्यास है, अर्थात कोई पूर्व स्थापित नायक नहीं है। सिर्फ पुलिस ही कर्ताधर्ता है।

संदीप डांगे! जुर्म की दुनिया का ऐसा नाम था, जिससे गली में विचरते चोर-उच्चकों से लेकर पुलिस के आला अफसर तक बखूबी वाकिफ थे। ये हाल तब था जब देश की राजधानी दिल्ली में ना तो माफिया राज था ना ही मुम्बई की तरह भाई लोगों ने यहां आतंक मचा रखा था। इसके बावजूद उसका धंधा जोरों पर था। स्मगलिंग से लेकर वसूली तक के कामों में उसका अस्सी फीसदी दबदबा कायम था।
  और एक दिन संदीप डांगे के पुत्र स्वदेश डांगे की लाश उसकी कार में पायी गयी।
एस आई निरंकुश राठी को जब इस घटना की खबर मिलती है कि संदीप डांगे के बेटे ने आत्महत्या कर ली तो वह इस घटना को आत्महत्या का रूप देने की कोशिश करता है। जिसमें उसका सहयोग हवलदार संदीप लांबा ने।
  ‘एक लड़के ने अपनी कार को सड़क के किनारे खड़ा कर के खुद को शूट कर लिया’ ये भी कोई केस हुआ साला।
‘कुछ करना होगा।’ - उसने सोचा – ‘कुछ ऐसा जिससे मेरी जय-जयकार भी हो जाये और मोटा माल भी झटका जा सके।’

और निरंकुश राठी ने इस आत्महत्या को हत्या का रूप दिया। बस यहीं गलती कर बैठा डांगे। क्योंकि उसे नहीं पता था कि यह लाश किस की है। और जब पता चला तो...
संदीप डांगे ने एस. आई. निरकुंं डांगे को स्पष्ट धमकी दी थी। या यो वह कातिल को तलाश करे या फिर...
एक हफ्ते का वक्त है तुम्हारे पास, कातिल को ढूंढ निकालने के लिये। अगर कामयाब हो गये तो याद करोगे कि किसी दरियादिल बाप से पाला पड़ा था। इसके विपरीत अगर तुम नाकामयाब रहे....”
राठी का दिल जोर से उछला! “......तो मुझे तुम्हारे ‘कहीं ना होने का’ का बहुत अफसोस होगा।” अपनी बात पूरी कर के वह घूमा और कमरे से बाहर निकल गया।

   अब  एस.आई निरंकुश के सामने एक चुनौती मौत के समान मुँह बाये खड़ी थी। आखिर वह कैसे एक आत्महत्या किये लड़के के कथित कातिल को तलाश करे।
आखिर वह कैसे संदीप डांगे जैसे डाॅन से बचे?
    उपन्यास में यहीं से आरम्भ होती है एक जबरदस्त कहानी। जहाँ एस. आई. निरंकुश को पता है कि इस कथित हत्या का कोई हत्यारा नहीं लेकिन उसे कथित हत्यारा ढूंढना है।
और फिर निरंकुश अपने हलवदार साथी संदीप के साथ मिलकर खेलता है एक खतरनाक खेल। जिसमें उसे दौलत और वाह-वाही प्राप्त होने की पूरी उम्मीद थी।
   कहानी में स्वदेश के कुछ दोस्त भी हैं। जिनके प्रसंग, घटनाएं कहानी को नया रंग देते हैं। और इनके परिवार भी इन दोस्ती से खुश नहीं, और एस. आई. निरंकुश के लिए ये सब चारे की तरह है।
“बढ़िया, एक का बाप दिल्ली का डॉन, दूसरे का एमपी, तीसरे का वकील, चौथे का बिल्डर, सब एक से ब़ढ़कर एक! अच्छा ये बताओ कि जिस फ्लैट को तुम चारों ने रंगरेलियां मनाने के लिये किराये पर ले रखा है उसका पता क्या है?”
     लेकिन इनकी रंगरलियां ज्यादा लंबे समय तक चलती नहीं।इनके जीवन में से स्वदेश का जाना और एस. आई. निरंकुश का आना सब कुछ बदल देता है।
अवनि सक्सेना चार मित्रों के ग्रुप की सदस्य है। जिसका किरदार पाठक को बहुत प्रभावित करता है और अंत तक आते-आते तो यह सब पर हावी हो जाती है। आखिर प्रसिद्ध वकील की बेटी जो ठहरी।
    
  उपन्यास में एस. आई. निरंकुश की हवलदार संदीप लांबा के कारनामे बहुत प्रभावित करते हैं और हास्य भी पैदा करते हैं। दोनों की दोस्ती भी है और दोनों एक-दूसरे से फायदा भी उठाना चाहते हैं। बस देखना यह है कि यह फायदा उठा कौन पाता है।
 
      मेरे विचार से यह उपन्यास लोकप्रिय साहित्य में‌ मील का पत्थर साबित होता, अगर कहानी उसी ट्रेक पर चलती जिस पर से पाठक इसे आरम्भ करता है। लेकिन कहानी अंत में कुछ और ही हकीकत व्यक्त करने लगती है। अगर आरम्भ जैसा- जैसा की पाठक अनुमान लगता है, उस में रोमांचित होता है तो यह उपन्यास एक अलग मुकाम हासिल करता।
मेरे कहने का अर्थ यह कदापि न लगाया जाये की प्रस्तुत कहानी में कोई कमी है, कहीं कोई नीरसता है। ऐसा कदाचित् नहीं है। कहानी उतनी ही रोचक और सस्पेंश वाली है जितनी पाठक जी की अन्य रचनाएँ।
यहाँ मैं सिर्फ अपने एक अलग दृष्टिकोण से विचार बता रहा हूँ। वैसे भी किसी कहानी का अंत लेखक को करना होता है,न की पाठक को। और पाठक स्वतंत्र होता है अपने अनुसार अपनी कल्पना के रंग भरने के लिए।
एम. बी. रोड़ पुलिस चौकी का चौकी का पहला इंचार्ज एसआई निरंकुश राठी को बनाया गया, जिसने आठ लोगों के स्टाफ के साथ अपना पदभार संभाला और काम में लग गया। उसके अलावा चौकी में दो हवलदार और छह सिपाही थे। जिसमें से हवलदार सुदीप लांबा उसका हमप्याला-हमनिवाला था इसलिए मुंहलगा भी था।
  तो यह उपन्यास इन दोनों के रोचक, हास्य और दिलचस्पी कारस्तानी की दास्तान। जब दोनों एक कथित आत्महत्या को हत्या में बदलने का प्रयास करते हैं। धन और नाम के लिए कुछ गलत करते हैं। आखिर में दोनों को क्या मिला? यह पढना रोचक है।
    'माया मिली न राम' यह एक हिंदी का प्रचलित मुहावरा है। यही दशा इस उपन्यासों के कुछ पात्रों के साथ होती है। जब लालच हद से बढ जाता है, मनुष्य में से मनुष्यता खत्म हो जाती है तो वह कहीं का नहीं रहता, उसे न माया मिलती है न राम।
    
उपन्यास- माया मिली न राम
लेखक- संतोष पाठक
प्रकाशन- थ्रिल वर्ल्ड
फाॅर्मेट- ebook on Kindle

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धन्यवाद।
- गुरप्रीत सिंह
श्री गंगानगर, राजस्थान


2 comments:

  1. पुस्तक के प्रति उत्सुकता जगाता आलेख। जल्द ही पढ़ने की कोशिश रहेगी।

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  2. Nice.but khani to sm pathak k kala naag jesi h plot same to same h

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