मुख्य पृष्ठ पर जायें

Wednesday, 15 April 2020

291. देव भक्ति- राम पुजारी

धर्म के नाम पर फैली अंधभक्ति की कथा।
देव भक्ति- राम पुजारी


         सामाजिक उपन्यासकार राम पुजारी जी का तृतीय उपन्यास 'देव भक्ति- आस्था का खेल' किंडल पर पढने को मिला। समाज में व्याप्त धार्मिक भ्रष्टाचार पर लिखा गया यह उपन्यास हमें बहुत कुछ सिखाता है।
      कोरोना वायरस 'COVID-19' के चलते देश में Lockdown चल रहा है। विद्यालय बंद है और हम अपने घर में सुरक्षा की दृष्टि से बंद हैं। इस समय का सदुपयोग करने के लिए किंडल पर किताब पढने का विचार बनाया।
इस क्रम में सबसे पहले राम पुजारी जी का उपन्यास 'देव भक्ति- आस्था का खेल' पढा।

         मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसे समाज में बहुत से नियमों का पालन करना पड़ता है। वे चाहे सामाजिक हो, धार्मिक हो या वैधानिक। मनुष्य को समाज में रहते हुए मान-सम्मान, धर्म, समाजिक संबंध, नातेदारी जैसे विभिन्न घटकों का निर्वाह करना ही पड़ता है। कभी-कभी मनुष्य इस कर्तव्यों का निर्वाह करते-करते बहुत दूर निकल जाता है, जहाँ से लौटना भी मुश्किल हो जाता है। 


         'देव-भक्ति- आस्था का खेल' ऐसे ही युवावर्ग की कहानी है जो समाज के दवाब के चलते अपने सपनों का महल नहीं बना सकते।
         देव और भक्ति दोनों बचपन के साथी थे, साथ-साथ खेलते- पढते हुए बड़े हुए। फिर समाज, पाखण्ड और अतिआदर्शवाद के क्रूर हाथों के चलते ऐसे मजबूर हुये कि दोनों की जान पर बन आई। एक तरफ बचपन का मासूम प्यार था तो दूसरी तरफ झूठी शान, वासना, तिरस्कार, घृणा और अंधभक्ति।


           जब सपने टूटते हैं आदि एकांतवास चाहता है। वह सब से दूरी बना लेता है। यही होता है देव और भक्ति के साथ। जब दोनों का प्रेम सामाजिक नियमों के चलते बिखर जाता है तो भक्ति सब कुछ छोड़ कर धर्म की शरण में चली जाती है।
धर्म मनुष्य का अंतिम विश्वास है। जब मनुष्य चारों तरफ से निराश हो जाता है तब भगवान‌ की शरण में जाता है। लेकिन जब वह तथाकथित धर्म और धर्म के रक्षक ही भक्षक बन जाये तो, यह सब भक्ति के साथ होता भी है।
           यहाँ एक बड़ा प्रश्न यह भी उठता है की धर्म क्या है?, भगवान क्या है?, उसकी क्या पहचान है? क्या मनुष्य अपने मन की शांति के लिए जिस धर्म की शरण में जा रहा है वह धर्म इतना सक्षम है कि वह शांति प्रदान कर देगा। क्या वह वास्तव में धर्म या भगवान है या फिर धर्म के नाम पर आड़ंबर है। इन सब प्रश्नों को उपन्यास में उठाकर उनका बहुत अच्छा उत्तर भी लेखक महोदय देते हैं।
         वर्तमान भारत में धर्म और भगवान के नाम पर जनता को लूटने के इतने स्थान बन गये, धर्म के नाम पर ढोंगी लोगों ने ऐसा प्रपंच फैला रखा है की सत्य और असत्य की पहचान करना भी मुश्किल हो गया है। धर्म आज वासना का आश्रय स्थल बन गया।
         लेखक का मूल उद्देश्य भी समाज में व्याप्त इसी धार्मिक अंधभक्ति का पर्दाफाश करना ही है। हमें अपना धर्म मानने की स्वतंत्रता है लेकिन जो लोग धर्म के नाम‌ समाज को गुमराह करते हैं उनके विरूद्ध भी हमें खड़ा होना होगा, क्योंकि वर्तमान तथाकथित संत- महात्मा अपने स्वार्थ के लिए किसी तरह धर्म का दुरुपयोग करते हैं यह इस उपन्यास में देखा जा सकता है।
         यह उपन्यास एक वास्तविक घटना से प्रेरित होकर लिखा गया है। उपन्यास के पात्र और घटनाएं चाहे काल्पनिक हैं लेकिन सत्य के बहुत नजदीक हैं। लेखक महोदय ने जिस तरह से इन घटनाओं, पात्रों आदि का वर्णन किया है वह इतना जीवंत है की पाठक स्तंभ सा रह जाता है।
        उपन्यास के तीन चार महत्वपूर्ण पात्र देव, भक्ति, आस्था और दीनबंधु चारों वह विशेष पात्र हैं जिनके माध्यम से इस निर्मिम सत्य का उद्धघाटन होता। और करतार सिंह जैसे वे व्यक्ति भी हैं जो अपनी जान की परवाह न कर समाज के लिए अपनी जान दे देते हैं।

उपन्यास के महत्वपूर्ण पात्रों का परिचय।
देवराज सिंह- देव बचपन से ही भक्ति को चाहता था मगर प्यार का इकरार होते ही वह कहीं चली गयी। कहां? नहीं पता। अब देव के जीवन का एक ही‌ मकसद का था अपने प्यार को ढूंढना।

भक्ति कश्यप- आज के जमाने भी क्या ऐसी लड़की हो सकती है, जो अपने माँ-बाप की इज्जत और मान-सम्मान के लिए अपने प्यार को कुर्बान कर दे,मुश्किल लगता है पर असंभव नहीं। गरिमा और सुंदरता की मूर्त भक्ति ऐसी ही थी।

आस्था- धार्मिक और आध्यात्मिक वातावरण में भी हवस, फरेब और झूठ अपना रास्ता ढूंढ ही लेते हैं। जब उसने प्यासी हसरतों‌ के वशीभूत होकर पांखण्ड के आसमान में उडान पर भरी तो वह उपर नहीं, धरती पर आ गिरी....क्यों?

जगत सेवक दीन बंधु- धर्म के नाम‌ अपनी सत्ता स्थापित करने वाला यह व्यक्ति वासना का नंगा खेल खेलता था।


महत्वपूर्ण संवाद -
उपन्यास में आये कुछ महत्वपूर्ण संवाद। ये संवाद उन‌ सुक्तियों की तरह हैं जो हमें रास्ता दिखाती हैं।

- कहते हैं कि बारह वर्ष से लेकर बीस वर्ष तक की लड़की के साथ कोई न कोई समझदार स्त्री होनी चाहिए, क्योंकि इस दौर में जिंदगी की राह में यह नहीं पता लगता कि कौन सा मोड़ खतरनाक है, और कौन सा नहीं।

- दोस्ती में कोई बंधन भी तो नहीं होता। किसी शर्त या किसी माँग का न होना ही तो, दोस्ती की पहली और अंतिम शर्त है।

- जिंदगी न तो सिर्फ दुख है और न ही सिर्फ सुख है। जिंदगी तो धूप-छांव है। .....जिंदगी की धूप-छांव में अपना रास्ता तलाशता हुआ जो मंजिल की ओर बढता है- वहीं सच्चा मनुष्य है, वही सच्चा इंसान है।


         प्यार, समाज और समाज में फैले धार्मिक अंधभक्ति और फिर उस अंधभक्ति का अंधा फायदा उठाते हुए बेहद लाचाल और क्रूर लोगों की कहानी है यह उपन्यास।
समाज में व्याप्त अंधश्रद्धा पर प्रहार करता है यह उपन्यास मात्र पठनीय ही नहीं बल्कि समाज में अलख जगाने का प्रयास भी है।
धन्यवाद।

उपन्यास- देव भक्ति- आस्था का खेल
लेखक- राम पुजारी
प्रकाशक- गुल्ली बाबा
पृष्ठ-
मूल्य-
किंडल लिंक- देव भक्ति

12 comments:

  1. इस उपन्यास ने मेरे दिल को छू लिया है। राम पुजारी जी के उपन्यासों में हमेशा ही समाज में अलख जगाने का प्रयास दिखता है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हां, यह वास्तव में बहुत अच्छा उपन्यास है।

      Delete
  2. Bahut badhiya. Maine bhi padhi hai. Alag hi style hai. Samajik lekhak💐💐💐💐

    ReplyDelete
  3. It's Really awesome...is book me sachai batai gai hai.. Jo aaj kal Ho raha hai.. Aur iska End to Bahut he bhavook karne wala hai..

    ReplyDelete
  4. Ultimate ����������
    Very fine work done by the writer. A collection of truth.

    ReplyDelete
  5. A must read to all. Consistent good work by Ram Pujari Ji.

    ReplyDelete
  6. I like the way writer have explained situation in secretive way which pushes reader to know what is next. I am Ruchi Pandey and Pujari hi I learned things from you about how to write content and attarct reader to know about next part . great job sir.

    ReplyDelete
  7. Another work of art from Ram Pujari, the story telling and character build up by the author is A grade. Another feather in Mr. Pujari's collection.

    ReplyDelete
  8. अद्धभुत रचना,, लेखन के विशेष दृष्टिकोण की जितनी तारीफ करें कम हैं।

    ReplyDelete
  9. अति सुंदर कृति। ऐसे दृष्टिकोण से कभी नही देखा इस विषय को।

    ReplyDelete
    Replies
    1. यह एक पठनीय रचना है।
      ब्लॉग पर पधारने के लिए धन्यवाद।

      Delete
  10. 'देव-भक्ति' उपन्यास अंधश्रद्धा पर प्रहार करता एक पठनीय उपन्यास है। सभी पाठकों का धन्यवाद जो ब्लॉग पर पधारे, समीक्षा को पढा और अपनी अमूल्य राय दी।
    धन्यवाद।

    ReplyDelete