जब विकास अपराधी बन गया....
आलपिन का खिलाड़ी- वेदप्रकाश शर्मा
लोकप्रिय उपन्यास साहित्य के प्रसिद्ध लेखक वेदप्रकाश शर्मा जी का आरम्भिक दौर का एक उपन्यास है 'आलपिन का खिलाड़ी'।
"अशरफ मैं आशा बोल रही हूँ।"
"अरे जल्दी बोलो,आदेश क्या है। मैं बहुत दिन से बोर हो रहा हूँ।"
"इस बार सारी बोरियत दूर हो जायेगी अशरफ, मुकाबला ऐसे व्यक्ति से है जिसे समाप्त करने में सिक्रेट सर्विस का प्रत्येक सदस्य ही नहीं बल्कि चीफ भी हिचकिचायेगा।"
"कौन है वो महाशय?"
"हमार ही एक साथी।"
"कौन?"
"विकास"
"क्या"
"सच"
ऐसी कौनसी परिस्थितियाँ पैदा हुयी जो स्वयं सीक्रेट सर्विस के सदस्य ही अपने साथी विकास की जान लेने पर आ गये।
बस यही से कहानी एक्शन आरोप हो जाता है और पाठक भी सोचता रह जाता है की आखिर यह कैसे हो गया।
दूसरी तरफ विकास भी अजीब सी परिस्थितियों में फंसा होता है। जहाँ उसके चारों तरफ मौत है। एक ऐसे जाल में ऒंसा है जहाँ से निकलना मुश्किल है। - इस बार बहुत मजा आयेगा विकास, तुम मेरे जाल से निकल नहीं सकते इस बार खुद तुम अपराधी हो। तुम्हारे नाना ठाकुर साहब ने स्वयं आदेश दिया है कि तुम्हें देखते ही गोली मार दी जाये।
तो क्या विकास मुजरिम बन गया? आखिर वह कौनसी सी परिस्थितियाँ रही होंगी जब विकास जैसा देशभक्त अपराधी बन गया। अब विकास क्या कहता है यह भी देख लीजिएगा- अब पूरी दुनिया मेरा मुजरिम वाला रूप देखेगी। अब दुनिया यह देखेगी कल तक का जासूस विकास मुजरिम बन कर क्या कर सकता है।
तो 'आलपिन का खिलाड़ी' उपन्यास की कहानी विकास के मुजरिम बन जाने की है। जहाँ सीक्रेट सर्विस, पुलिस और दुश्मन सब विकास की जान लेना चाहते हैं।-आजकल यहाँ विकास की कोई खास अच्छी नहीं है सर, सारे देश की पुलिस उसकी तलाश में है।
आखिर यह कैसे हो गया?
एक देशभक्त कैसे मुजरिम बन गया?
इसी रहस्य को समझने के लिए यह उपन्यास पढना होगा।
उपन्यास का आरम्भ बंदर धनुषटंकार से होता है। विजय-विकास का प्रिय धनुषटंकार। जो शरीर से चाहे बंदर है लेकिन उसके अंदर मस्तिष्क एक मनुष्य का है। ( इसकी भी एक कहानी है)
धनुष्टंकार न सिर्फ साधारण बंदर बल्कि विकास जैसे खतरनाक लड़के का चेला था। लड़ने के हर पैंतरे में पूरी तरह माहिर।
उपन्यास में धनुषटंकार का किरदार उन फिल्मी बंदरों जैसा है जो मोटरसाइकिल और कार चलाते हैं, खैर....यहां भी धनुषंटकार यही कारनामें करता है।
आलपिन का खिलाड़ी-
उपन्यास का शीर्षक वास्तव में रोचक हथ पर उपन्यास में शीर्षक कोई विशेष महत्व नहीं रखता। अगर अतिरिक्त मेहनत की जाती तो आलपिन के और भी कारनामे दिखाये जा सकते थे।
'आपका बच्चा आलपिन का खिलाड़ी है गुरु।'
उपन्यास का कथानक सामान्य स्तर का है। एक छोटा सा रहस्य है वह है विकास का। इसके अतिरिक्त उपन्यास में एक्शन दृश्य (लडा़ई) बहुत ज्यादा हैं।
उपन्यास में एक सदस्य दो-दो फेसमास्क लगा कर घूमता है और किसी को पता तक नहीं चलता। ऐसा वेद जी के अन्य उपन्यासों में भी मिलता है।
हां, उपन्यास एक्शन के स्तर पर तो खैर निराश नहीं करेगा। बस एक बार बार इसलिए पढा जा सकता है की उपन्यास वेदप्रकाश शर्मा जी का लिखा हुआ है।
उपन्यास- आलपिन का खिलाड़ी
लेखक- वेदप्रकाश शर्मा
आलपिन का खिलाड़ी- वेदप्रकाश शर्मा
लोकप्रिय उपन्यास साहित्य के प्रसिद्ध लेखक वेदप्रकाश शर्मा जी का आरम्भिक दौर का एक उपन्यास है 'आलपिन का खिलाड़ी'।
"अशरफ मैं आशा बोल रही हूँ।"
"अरे जल्दी बोलो,आदेश क्या है। मैं बहुत दिन से बोर हो रहा हूँ।"
"इस बार सारी बोरियत दूर हो जायेगी अशरफ, मुकाबला ऐसे व्यक्ति से है जिसे समाप्त करने में सिक्रेट सर्विस का प्रत्येक सदस्य ही नहीं बल्कि चीफ भी हिचकिचायेगा।"
"कौन है वो महाशय?"
"हमार ही एक साथी।"
"कौन?"
"विकास"
"क्या"
"सच"
ऐसी कौनसी परिस्थितियाँ पैदा हुयी जो स्वयं सीक्रेट सर्विस के सदस्य ही अपने साथी विकास की जान लेने पर आ गये।
बस यही से कहानी एक्शन आरोप हो जाता है और पाठक भी सोचता रह जाता है की आखिर यह कैसे हो गया।
दूसरी तरफ विकास भी अजीब सी परिस्थितियों में फंसा होता है। जहाँ उसके चारों तरफ मौत है। एक ऐसे जाल में ऒंसा है जहाँ से निकलना मुश्किल है। - इस बार बहुत मजा आयेगा विकास, तुम मेरे जाल से निकल नहीं सकते इस बार खुद तुम अपराधी हो। तुम्हारे नाना ठाकुर साहब ने स्वयं आदेश दिया है कि तुम्हें देखते ही गोली मार दी जाये।
तो क्या विकास मुजरिम बन गया? आखिर वह कौनसी सी परिस्थितियाँ रही होंगी जब विकास जैसा देशभक्त अपराधी बन गया। अब विकास क्या कहता है यह भी देख लीजिएगा- अब पूरी दुनिया मेरा मुजरिम वाला रूप देखेगी। अब दुनिया यह देखेगी कल तक का जासूस विकास मुजरिम बन कर क्या कर सकता है।
तो 'आलपिन का खिलाड़ी' उपन्यास की कहानी विकास के मुजरिम बन जाने की है। जहाँ सीक्रेट सर्विस, पुलिस और दुश्मन सब विकास की जान लेना चाहते हैं।-आजकल यहाँ विकास की कोई खास अच्छी नहीं है सर, सारे देश की पुलिस उसकी तलाश में है।
आखिर यह कैसे हो गया?
एक देशभक्त कैसे मुजरिम बन गया?
इसी रहस्य को समझने के लिए यह उपन्यास पढना होगा।
उपन्यास का आरम्भ बंदर धनुषटंकार से होता है। विजय-विकास का प्रिय धनुषटंकार। जो शरीर से चाहे बंदर है लेकिन उसके अंदर मस्तिष्क एक मनुष्य का है। ( इसकी भी एक कहानी है)
धनुष्टंकार न सिर्फ साधारण बंदर बल्कि विकास जैसे खतरनाक लड़के का चेला था। लड़ने के हर पैंतरे में पूरी तरह माहिर।
उपन्यास में धनुषटंकार का किरदार उन फिल्मी बंदरों जैसा है जो मोटरसाइकिल और कार चलाते हैं, खैर....यहां भी धनुषंटकार यही कारनामें करता है।
आलपिन का खिलाड़ी-
उपन्यास का शीर्षक वास्तव में रोचक हथ पर उपन्यास में शीर्षक कोई विशेष महत्व नहीं रखता। अगर अतिरिक्त मेहनत की जाती तो आलपिन के और भी कारनामे दिखाये जा सकते थे।
'आपका बच्चा आलपिन का खिलाड़ी है गुरु।'
उपन्यास का कथानक सामान्य स्तर का है। एक छोटा सा रहस्य है वह है विकास का। इसके अतिरिक्त उपन्यास में एक्शन दृश्य (लडा़ई) बहुत ज्यादा हैं।
उपन्यास में एक सदस्य दो-दो फेसमास्क लगा कर घूमता है और किसी को पता तक नहीं चलता। ऐसा वेद जी के अन्य उपन्यासों में भी मिलता है।
हां, उपन्यास एक्शन के स्तर पर तो खैर निराश नहीं करेगा। बस एक बार बार इसलिए पढा जा सकता है की उपन्यास वेदप्रकाश शर्मा जी का लिखा हुआ है।
उपन्यास- आलपिन का खिलाड़ी
लेखक- वेदप्रकाश शर्मा
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