एक वैज्ञानिक की अंटार्कटिका यात्रा
पृथ्वी के छोर पर- डाॅ. शरदिन्दु मुकर्जी
कभी-कभी अलग प्रकार ही नहीं बहुत अलग प्रकार की किताबें पढने को मिल जाती हैं। ऐसी किताबें जो स्मृति पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं। जब कुछ ऐसा पढने को मिल जाये जो अपनी उम्मीदों से परे हो, अपनी कल्पना शक्ति से आगे हो और रुचिकर हो तो उसकी चर्चा आवश्यक हो जाती है। ऐसी ही एक रचना 'पृथ्वी के छोर पर' पढने को मिली।
पृथ्वी के छोर पर' भूवैज्ञानिक शरदिंदु मुकर्जी जी के अंटार्कटिका यात्रा का रोमांचक वर्णन है। भारत का वैज्ञानिक दल अंटार्कटिका में शोध हेतु जाता रहता है। वहाँ पर भारत के दो शोध केन्द्र भी हैं दक्षिण गंगोत्री और मैत्री।
अंटार्कटिका के अपने तीन दशकों से भी अधिक समय के सम्पर्क से और वहाँ के विभिन्न अभियानों में भाग लेने के कारण उनके पास इस अद्भुत हिमप्रदेश के अनेक रहस्यमय संस्मरणों का एक विशाल भण्डार मौजूद है. एक सशक्त लेखक, प्रकृति प्रेमी कवि तथा कुशल वैज्ञानिक होने के कारण जिस सहजता से बखूबी उन्होंने अपनी आँखों देखी बातों का विवरण ‘पृथ्वी के छोर पर' में लिखा है, उसने इस पुस्तक को रोमांचकारी रूप प्रदान कर दिया है.
प्रस्तुत रचना अंटार्कटिका का कोई भौतिक या वैज्ञानिक चित्रण नहीं करती। यह तो एक वैज्ञानिक के उन रोचक अनुभवों का वर्णन है जो उन्होंने अंटार्कटिका में महसूस किया। शरदिंदु जी ने हर बात/घटना को इतने रोचक रूप से प्रस्तुत किया है की कहीं हास्य है तो कहीं कौतूहल।
कुछ घटनाएं तो इतनी दिलचस्पी हैं की सांस ठहर सा जाता है और कुछ घटनाएं बरबस होंठों पर हँसी ले आती हैं।
आपको यात्रा वृतांत पढने में दिलचस्प हो या न हो,आपको अंटार्कटिका अच्छा लगे या न लगे लेकिन आप यह पुस्तक पढें यह आपको निश्चित तौर पर अच्छी लगेगी। क्योंकि इसमें कोई तथाकथित गंभीरता नहीं है। इसमें तो एक वैज्ञानिक के वास्तविक जीवंत पल हैं।
अगर आप कुछ अलग, सत्य और रोचक पढना चाहते हैं तो यह रचना अवश्य पढें।
शरदिंदु जी को चार बार अंटार्कटिका जाने का मौका मिला। इन चारों यात्राओं का वर्णन है 'पृथ्वी के छोर पर'।
सबसे रोचक वर्णन मुकर्जी की प्रथम यात्रा का है। तब उनके लिए अंटार्कटिका और वहाँ के अनुभव नये थे वहीं अनुभव जब परिपक्व हो गये तो बाद की यात्राओं में वे उनके लिए इतने रोचक नहीं रहे। वहीं पहली यात्रा में वे एक अधीनस्थ हैं तो वहीं चतुर्थ यात्रा में वे प्रमुख हैं।
इन यात्राओं के कुछ रोचक किस्से यहाँ प्रस्तुत हैं
नींद ठीक से आयी थी या नहीं ध्यान नहीं है – बंदूक से गोली चलने की आवाज़ ने हमें तटस्थ कर दिया. आँखें खुल गयीं और एक अजीब सा डर मन में डेरा डालने लगा. बंदूक अर्थात अपराध। क्या अंटार्कटिका में भी अपराध भावना हमारा पीछा नहीं छोड़ेगी ? .......एक....दो...तीन.... लगातार तीन धमाके और हुये. अब लेटे रहना अनुचित भी था और असम्भव भी. हम दोनों एक झटके में अपने पैरों पर थे. मन में एक ही प्रश्न था ‘‘कौन किसको मार रहा है...आख़िर क्यों’'
अब यह कैसे संभव था कि अंटार्कटिका में बंदूक के धमाके। आखिर वहाँ ऐसा क्या हुआ था। ऐसे एक नहीं अनेक किस्से इस यात्रा वृतांत में पढने को मिलेंगे जहाँ एक बार ये किस्से रोंगटे खड़े कर देते हैं तो वहीं हास्य भी पैदा करते हैं। लेकिन सलाम इन साहसी वैज्ञानिकों को जो शून्य से 45 डिग्री नीचे के तापमान पर भी हँसते-हँसते कार्य करते रहे।
देखते ही देखते स्टेशन के अंदर का तापमान भी शून्य से 45 डिग्री सेल्सियस नीचे उतर गया. बर्फ़ जमने के कारण पानी के पाईप कई जगह फट गये. हड्डी को कँपा देने वाली हवा स्टेशन के अंदर हर कोने में पहुँचने दिया गया।
- जून 1986 की एक बेहद ठण्डी रात – बाहर का तापमान शून्य से 42 डिग्री सेल्सियस नीचे अर्थात माईनस 42 डिग्री सेल्सियस था लेकिन आसमान साफ़ था. ऐसे सुंदर मौसम में खुले आकाश के नीचे अंटार्कटिका का नज़ारा क्या होगा सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है.
इस वृतांत को तो पढकर ही जाना जा सकता है वैसे मुझे कुछ घटनाएं बहुत रोचक लगी जैसे- एक वैज्ञानिक का खो जाना और खोजने की खुशी में रास्ता भूल जाना, अंटार्कटिका में आग लगना और रूस के कैम्प की घटनाएं आदि।
अगर आप घर बैठे अंटार्कटिका महाद्वीप की यात्रा करना चाहते हो तो यह यात्रा वृतांत अवश्य पढें। और आप पढकर यही कहेंगे वाह! कोई यात्रा वृतांत इतना रोचक भी हो सकता है। और वह भी उस जगह का जहाँ चारों तरफ बर्फ ही बर्फ है और गण्य व्यक्तियों के अतिरिक्त वहाँ कोई नहीं।
प्रस्तुत रचना 37 भागों में विभक्त है। और सभी के अलग-अलग शीर्षक हैं। कुछ रोचक शीर्षक प्रस्तुत हैं।
आसमान में उल्टा लटका जहाज़
बंदूक की गोली
आकाश में आग की लपटें
वह अलौकिक हेडलाईट
बर्फ़ की गहरी खाई में
दक्षिण गंगोत्री में सांस्कृतिक उत्सव
समुद्र के ऊपर चहलक़दमी
रोमांचक 58 घंटे
इतिहास का एक टुकड़ा – मॉरीशस
बर्फ़ में क़ैद
नयी छलांग, नया इतिहास
जहाज़ अदृश्य हो गया
आग -- आग -- आग
नयी ऊर्जा और आकाश में डिस्को डांस
अंतिम पुकार
मुझे यह यात्रा वृतांत बहुत रोचक लगा। क्योंकि यह मात्र अंटार्कटिका का वर्णन ही नहीं करता वरण यह तो उन यात्रियों के रोमांच क्षणों का साक्षी है। यात्रा वृतांत कहीं कहीं आपको हँसायेगा तो कहीं दहशत पैदा करेगा। लेकिन पाठक इसके प्रत्येक घटनाक्रम का आनंद उठा पायेगा ऐसा मेरा विश्वास है।
आप इस यात्रा वृतांत को पढें आपको अच्छा लगेगा। बस पाठक सहृदय होना चाहिए।
पुस्तक- पृथ्वी के छोर पर (यात्रा वृतांत)
लेखक - शरदिंदु मुकर्जी (भूवैज्ञानिक)
प्रकाशक
एमेजन लिंक- पृथ्वी के छोर पर
पृथ्वी के छोर पर- डाॅ. शरदिन्दु मुकर्जी
कभी-कभी अलग प्रकार ही नहीं बहुत अलग प्रकार की किताबें पढने को मिल जाती हैं। ऐसी किताबें जो स्मृति पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं। जब कुछ ऐसा पढने को मिल जाये जो अपनी उम्मीदों से परे हो, अपनी कल्पना शक्ति से आगे हो और रुचिकर हो तो उसकी चर्चा आवश्यक हो जाती है। ऐसी ही एक रचना 'पृथ्वी के छोर पर' पढने को मिली।
पृथ्वी के छोर पर' भूवैज्ञानिक शरदिंदु मुकर्जी जी के अंटार्कटिका यात्रा का रोमांचक वर्णन है। भारत का वैज्ञानिक दल अंटार्कटिका में शोध हेतु जाता रहता है। वहाँ पर भारत के दो शोध केन्द्र भी हैं दक्षिण गंगोत्री और मैत्री।
अंटार्कटिका के अपने तीन दशकों से भी अधिक समय के सम्पर्क से और वहाँ के विभिन्न अभियानों में भाग लेने के कारण उनके पास इस अद्भुत हिमप्रदेश के अनेक रहस्यमय संस्मरणों का एक विशाल भण्डार मौजूद है. एक सशक्त लेखक, प्रकृति प्रेमी कवि तथा कुशल वैज्ञानिक होने के कारण जिस सहजता से बखूबी उन्होंने अपनी आँखों देखी बातों का विवरण ‘पृथ्वी के छोर पर' में लिखा है, उसने इस पुस्तक को रोमांचकारी रूप प्रदान कर दिया है.
प्रस्तुत रचना अंटार्कटिका का कोई भौतिक या वैज्ञानिक चित्रण नहीं करती। यह तो एक वैज्ञानिक के उन रोचक अनुभवों का वर्णन है जो उन्होंने अंटार्कटिका में महसूस किया। शरदिंदु जी ने हर बात/घटना को इतने रोचक रूप से प्रस्तुत किया है की कहीं हास्य है तो कहीं कौतूहल।
कुछ घटनाएं तो इतनी दिलचस्पी हैं की सांस ठहर सा जाता है और कुछ घटनाएं बरबस होंठों पर हँसी ले आती हैं।
आपको यात्रा वृतांत पढने में दिलचस्प हो या न हो,आपको अंटार्कटिका अच्छा लगे या न लगे लेकिन आप यह पुस्तक पढें यह आपको निश्चित तौर पर अच्छी लगेगी। क्योंकि इसमें कोई तथाकथित गंभीरता नहीं है। इसमें तो एक वैज्ञानिक के वास्तविक जीवंत पल हैं।
अगर आप कुछ अलग, सत्य और रोचक पढना चाहते हैं तो यह रचना अवश्य पढें।
शरदिंदु जी को चार बार अंटार्कटिका जाने का मौका मिला। इन चारों यात्राओं का वर्णन है 'पृथ्वी के छोर पर'।
सबसे रोचक वर्णन मुकर्जी की प्रथम यात्रा का है। तब उनके लिए अंटार्कटिका और वहाँ के अनुभव नये थे वहीं अनुभव जब परिपक्व हो गये तो बाद की यात्राओं में वे उनके लिए इतने रोचक नहीं रहे। वहीं पहली यात्रा में वे एक अधीनस्थ हैं तो वहीं चतुर्थ यात्रा में वे प्रमुख हैं।
इन यात्राओं के कुछ रोचक किस्से यहाँ प्रस्तुत हैं
नींद ठीक से आयी थी या नहीं ध्यान नहीं है – बंदूक से गोली चलने की आवाज़ ने हमें तटस्थ कर दिया. आँखें खुल गयीं और एक अजीब सा डर मन में डेरा डालने लगा. बंदूक अर्थात अपराध। क्या अंटार्कटिका में भी अपराध भावना हमारा पीछा नहीं छोड़ेगी ? .......एक....दो...तीन.... लगातार तीन धमाके और हुये. अब लेटे रहना अनुचित भी था और असम्भव भी. हम दोनों एक झटके में अपने पैरों पर थे. मन में एक ही प्रश्न था ‘‘कौन किसको मार रहा है...आख़िर क्यों’'
अब यह कैसे संभव था कि अंटार्कटिका में बंदूक के धमाके। आखिर वहाँ ऐसा क्या हुआ था। ऐसे एक नहीं अनेक किस्से इस यात्रा वृतांत में पढने को मिलेंगे जहाँ एक बार ये किस्से रोंगटे खड़े कर देते हैं तो वहीं हास्य भी पैदा करते हैं। लेकिन सलाम इन साहसी वैज्ञानिकों को जो शून्य से 45 डिग्री नीचे के तापमान पर भी हँसते-हँसते कार्य करते रहे।
देखते ही देखते स्टेशन के अंदर का तापमान भी शून्य से 45 डिग्री सेल्सियस नीचे उतर गया. बर्फ़ जमने के कारण पानी के पाईप कई जगह फट गये. हड्डी को कँपा देने वाली हवा स्टेशन के अंदर हर कोने में पहुँचने दिया गया।
- जून 1986 की एक बेहद ठण्डी रात – बाहर का तापमान शून्य से 42 डिग्री सेल्सियस नीचे अर्थात माईनस 42 डिग्री सेल्सियस था लेकिन आसमान साफ़ था. ऐसे सुंदर मौसम में खुले आकाश के नीचे अंटार्कटिका का नज़ारा क्या होगा सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है.
इस वृतांत को तो पढकर ही जाना जा सकता है वैसे मुझे कुछ घटनाएं बहुत रोचक लगी जैसे- एक वैज्ञानिक का खो जाना और खोजने की खुशी में रास्ता भूल जाना, अंटार्कटिका में आग लगना और रूस के कैम्प की घटनाएं आदि।
अगर आप घर बैठे अंटार्कटिका महाद्वीप की यात्रा करना चाहते हो तो यह यात्रा वृतांत अवश्य पढें। और आप पढकर यही कहेंगे वाह! कोई यात्रा वृतांत इतना रोचक भी हो सकता है। और वह भी उस जगह का जहाँ चारों तरफ बर्फ ही बर्फ है और गण्य व्यक्तियों के अतिरिक्त वहाँ कोई नहीं।
प्रस्तुत रचना 37 भागों में विभक्त है। और सभी के अलग-अलग शीर्षक हैं। कुछ रोचक शीर्षक प्रस्तुत हैं।
आसमान में उल्टा लटका जहाज़
बंदूक की गोली
आकाश में आग की लपटें
वह अलौकिक हेडलाईट
बर्फ़ की गहरी खाई में
दक्षिण गंगोत्री में सांस्कृतिक उत्सव
समुद्र के ऊपर चहलक़दमी
रोमांचक 58 घंटे
इतिहास का एक टुकड़ा – मॉरीशस
बर्फ़ में क़ैद
नयी छलांग, नया इतिहास
जहाज़ अदृश्य हो गया
आग -- आग -- आग
नयी ऊर्जा और आकाश में डिस्को डांस
अंतिम पुकार
मुझे यह यात्रा वृतांत बहुत रोचक लगा। क्योंकि यह मात्र अंटार्कटिका का वर्णन ही नहीं करता वरण यह तो उन यात्रियों के रोमांच क्षणों का साक्षी है। यात्रा वृतांत कहीं कहीं आपको हँसायेगा तो कहीं दहशत पैदा करेगा। लेकिन पाठक इसके प्रत्येक घटनाक्रम का आनंद उठा पायेगा ऐसा मेरा विश्वास है।
आप इस यात्रा वृतांत को पढें आपको अच्छा लगेगा। बस पाठक सहृदय होना चाहिए।
पुस्तक- पृथ्वी के छोर पर (यात्रा वृतांत)
लेखक - शरदिंदु मुकर्जी (भूवैज्ञानिक)
प्रकाशक
एमेजन लिंक- पृथ्वी के छोर पर
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