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Tuesday, 21 August 2018

135. वो भयानक रात- मिथिलेश गुप्ता

एक भयानक रात जंगल में...
वो भयानक रात- मिथिलेश गुप्ता, हाॅरर लघु उपन्यास, रोचक-पठनीय।
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वह एक भयानक रात थी, अमावश की भयानक रात और ऐसी भयानक रात में एक परिवार जंगल में फंस गया।  उस परिवार कर साथ एक हादसा हुआ एक ऐसा हादसा जिसने पूरे परिवार को दहला दिया।
       उस हादसे बाद समय रुक गया....जी हां, समय वहीं ठहर गया।
क्या यह हादसा था या परिवार का वहम।
   
            लोकप्रिय उपन्यास जगत में सूरज पॉकेट बुक्स ने बहुत कम समय में अपनी पहचान स्थापित की है। परम्परागत जासूसी उपन्यासों के कागज के स्तर से मुक्त होकर अच्छे स्तरीय कागज पर उपन्यासों का प्रकाशन आरम्भ किया।
               सूरज पॉकेट बुक्स ने सभी श्रेणी के उपन्यासों का प्रकाशन किया है और इसी क्रम में मिथिलेश गुप्ता का उपन्यास है 'वो भयानक रात'। यह एक हाॅरर उपन्यास है।
                
                  वो भयानक रात की घटना है 11 जनवरी 2004 की जब रिटायर्ड आर्मी मेजर संग्राम सिंह अपनी पत्नी अर्चना, पुत्र राहुल और पुत्रवधु गीता के साथ एक पार्टी से घर लौट रहे थे।  रास्ते में एक भयानक जंगल था और रात का समय था।
  अमावश की एक मनहूस काली रात
   चारों तरफ घनघोर अंधेरा।
एक सुनसान सड़क और सड़क के दोनों तरफ फैला हुआ एक घना जंगल।
सड़क पर तेजी से दौड़ती हुयी एक कार। (पृष्ठ-09)
   उस भयानक जंगल में कार का एक्सीडेंट हो गया।  यह भी एक रहस्य था की आखिर एक्सीडेंट किस के साथ हुआ।
"....सड़क पर तो कोई भी नहीं दिखाई दे रहा है, न ही आसपास कोई परछाई। फिर तुम टकराए किस चीज से....मतलब कार किस चीज से टकराई थी?"- संग्राम सिंह ने राहुल को अजीब तरह से घूरते हुए कहा।
" पता नहीं पापा ऐसा लगा कोई था सड़क पर....लेकिन‌ मुझे कोई दिखाई नहीं दिया लगता है ऐसा लगा जैसे कोई अचानक से कार के सामने आया हो....।"(पृष्ठ-13)
- आखिर इस परिवार के साथ जंगल‌ में क्या हादसा पेश आया?
- आखिर कार का एक्सीडेंट किस के साथ हुआ?
- क्या यह परिवार जंगल से सुरक्षित लौट पाया?
- क्या रहस्य था इस अमावस्य की काली रात का?
            मिथिलेश गुप्ता का यह उपन्यास आकार में चाहे छोटा हो लेकिन कथ्य में बहुत शानदार है। कहानी आरम्भ से अंत रहस्य के आवरण में‌ लिपटी रहती है। उपन्यास में हर पल यह रहस्य बना रहता है की इस परिवार के साथ आगे क्या होगा।
    
                 संग्राम सिंह का परिवार जब जब जंगल में कार एक्सीडेंट के पश्चात एक अदृश्य जाल में फंस जाता है। यहीं से उपन्यास में जबरदस्त मोड आरम्भ हो जाता है। राहुल जब एक्सीडेंट वाली जगह से लौट कर आता है तो वह गुमसुम सा रहता है।
       संग्राम सिंह जब राहुल को ढूंढकर लाता है तो कार के पास से अर्चना और गीता को गायब पाता है। उपन्यास में इस प्रकार के घटनाक्रम उपन्यास को बहुत रोचक बनाते हैं।
       उपन्यास में शाब्दिक/मुद्रण गलतियाँ हैं, हालांकि यह कोई ज्यादा नहीं है।
    उपन्यास का अंतिम दृश्य जो की लेखक ने मेरे विचार से फिल्मी रूप से लिख दिया, क्योंकि वहाँ कुछ स्पष्ट नहीं किया। मिल में दृश्य पाठक ले समक्ष होता है तो वहाँ दृश्य को समझाने की जरूरत नहीं पड़ती लेकिन उपन्यास में दृश्य को शब्दों से जीवित करना पड़ता है।
"पापा"
"आप कुछ बोल क्यों नहीं रहे?"
अचानक संग्राम सिंह राहुल की तरफ एकदम से पलटा।
उसका चेहरा देख कर राहुल सकते में गया। (पृष्ठ-47)
       अब राहुल क्यों चौंका?
        बाकी परिवार केे सदस्य क्यों नहीं चौंके?
अगर लेखक यहाँ कुछ कोशिश करता तो यह दृश्य और भी अच्छा बनता व सार्थक बनता।
    
       उपन्यास की कहानी अच्छी व रोचक है। लेखक का प्रयास वास्तव में सराहनीय है।
          
निष्कर्ष-
           हाॅरर उपन्यास बहुत अच्छा व दिलचस्प है। कहानी में पृष्ठ दर पृष्ठ रहस्य पढता चला जाता है। पाठक प्रतिपल यही सोचता है की आगे क्या होगा।  यह रहस्य अंत तक यथावत रहता है।
उपन्यास जबरदस्त, रोचक और पठनीय है।
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उपन्यास- वो भयानक रात
लेखक- मिथिलेश गुप्ता
ISBN- 978-1-944820-21-3
प्रथम संस्करण- Set. 2015
द्वितीय संस्करण- Feb. 2017
प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स
पृष्ठ- 52
मूल्य-80₹
लेखक ब्लॉग
www.mihileshgupta152.blogspot.in

1 comment:

  1. धयवाद भाई ,, कोशिश रहेगी आगे और भी अच्छा लिखने की :)

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