कहानी इंसाफ की
इंसाफ मैं करूंगा - टाइगर
एक साधारण सी कहानी है और वैसा ही उसका समापन है। अक्सर ऐसी कहानियाँ हिंदी फिल्मों में खूब देखने को मिलती हैं। अब पता नहीं उपन्यासकार वैसी ही बोरियत कथा क्यों लिख देते हैं जैसी ना जाने कितनी बार दोहराई जा चुकी हैं।
हालांकि समीक्षा वाला यह उपन्यास काफी पुराना है और हो सकता है तब इस प्रकार की कहानियाँ काफी प्रसिद्ध रही हों, पर अब कई वर्षों पश्चात ये उपन्यास/कहानी कोई असर नहीं छोङती।
        उपन्यास पढ लिया और इस पर समीक्षा लिखनी थी ताकी भविष्य के पाठक इन लेखकों की रचनाओं से परिचित हो सकें, बस इसलिए ये समीक्षा लिख रहा हूँ ।
हालांकि टाइगर के सभी उपन्यास ऐसे नहीं हैं, बहुत गजब उपन्यास भी इन्होंने लिखे हैं।
        अभी 17.04.2017 को टाइगर का क्रमशः पांचवां उपन्यास 'इंसाफ मैं करुंगा' पढा।
प्रस्तुत उपन्यास की कहानी पूर्णतः साधारण है।
सेठ किशन लाल और रूपचंद दोनों संयुक्त रूप से एक फैक्ट्री स्थापित करते हैं। इस फैक्ट्री की पनाह में सेठ रूपचंद स्मग्लिंग का कार्य करता है। एक दिन सेठ रूपचंद अपने मित्र किशनलाल की हत्या करवा कर उस फैक्ट्री पर कब्जा कर लेता है।
         सेठ किशन लाल की पत्नी अपने पुत्र-पुत्री के साथ शहर छोङ देती है। समयानुसार किशन लाल का पुत्र अजय जवान होकर सेठ रूपचंद से प्रतिशोध लेता है और फैक्ट्री का मालिक बन जाता है।
लो जी हो गयी 'इंसाफ मैं करूंगा' उपन्यास की कथा पूर्ण।
उपन्यास में कोई रोचकता नहीं है, धीमी रफ्तार व परम्परागत कहानी कोई खास असर पाठक पर नहीं छोड़ती । उपन्यास के कुछ संवाद अवश्य पढने लायक हैं।
उपन्यास नाम के अनुसार थ्रिलर है पर वास्तव में ये सामाजिक ज्यादा हो गयी।
संवाद-
-"दौलत की हवस आदमी को अंधा कर देती है। तब वह कुछ भी नहीं देख पाता। रिश्तों की बात भी भूल जाता है। इसी हवस के बढ जाने से वह अच्छे -बुरे  की तमीज खो बैठता है।"
- " आदमी के पास अगर दौलत का जहर एकत्र हो जाये तो वह नाग बन जाता है।" (पृष्ठ-27)
-"पूंजीपति लोग जब तक मजदूर के खून की आखिरी बूंद भी नहीं चूस लेते उसे मरने कहां देते हैं।" (पृष्ठ-39)
- "गरीबी में दर्जे नहीं हुआ करते। दर्जे तो अमीरों के होते हैं- लखपति, करोङपति और अरबपति। गरीब तो हर हाल में गरीब है। एक रूप है- एक ही परिभाषा।" (पृष्ठ-54)
- "गरीबी से ही जन्म लेता है कम्युनिज्म....और बराबरी का नारा।" (पृष्ठ-64)
-"गरीब के लिए प्यार जैसी भावना अनमोल है। वह जिसे चाहने लगता है- उसे निभाने के लिए टूट जाना कबूल कर लेता है। लेकिन अमीरों के लिए तो प्यार शब्द एक खेल से ज्यादा महत्व नहीं रखता। यह लोग अगर सुबह ब्रेकफास्ट करना भूल जाते हैं तो प्यार कर लेते हैं।" (पृष्ठ-102)
-" जहाँ इंसान को दो रोटी मिले - वहाँ सिर झुकाना पङता है। उस जगह का दर्जा मंदिर- मस्जिद के समान ही होता है।" (पृष्ठ-153)
- "बाहर जलती आग का तमाशा सभी देख पाते हैं...उसी आग की कुछ चिंगारियों से अपना घर जलने लगे तो आदमी सहन नहीं कर पाता, पीङा से चीख उठता है।" (पृष्ठ-177)
           उपर्युक्त संवाद पढ ही पता चलता है की उपन्यास में प्रेम-नफरत, ईर्ष्या-द्वेष, प्रतिशोध का रूप शामिल है।
उपन्यास का समापन सुखांत है।
-----
उपन्यास- इंसाफ मैं करूंगा
लेखक - टाइगर
प्रकाशक- राजा पाकेट बुक्स
पृष्ठ- 208
मूल्य- 15₹
(वर्तमान कीमतों के अनुसार मूल्य परिवर्तन संभव है)

No comments:
Post a Comment